बचपन से सुनते आ रहे हैं कि साधु सन्यासी जो भी होते हैं वे हठी होते हैं। एक बार जो कह दिया सो कह दिया। जो सोच लिया वहीं करेंगे चाहे फिर भगवान भी उतरकर आ जाये तो नहीं सुनेंगे। इस बार भाजपा ने फिर बाबा का हठ योग फिर देख लिया। बाबा ने कहा दिया एके को मंत्री नहीं बनाना। बाबा के हठ योग के आगे भाजपा के दूसरे आला नेता जिनके बारे में कहा जाता है कि जो सोच लिया वह करके रहते हैं उनका हठ भी पीछे रह गया। बाबा का हठ योग कोई पहली बार नहीं है। इससे पहले भी अनेक बार ऐसा हुआ है कि बाबा के हठ ने भाजपा नेतृत्व के पसीने छुड़ा दिये थे। एक बार तो हठ योग समाप्त करवाने के लिए भाजपा के तत्कालीन राष्टÑीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह को भी गोरख पीठ जाना पड़ा। हालांकि बाबा के गुरू भी हठ योग में पारंगत रहे थे। उनके हठ योग ने भी अनेकों बार भाजपा नेतृत्व के पसीने छुड़ा दिये थे।
अब जबकि विधानसभा चुनाव सिर पर है। बाबा की मांग प्रदेश से बाहर भी प्रधानमंत्री के बाद दूसरे नंबर पर है। पार्टी चाहे कुछ भी कहें लेकिन बाबा का भगवा रूप देश व प्रदेश के भगवा प्रेमियों के सिर चढ़कर बोलता है। ऐसे में बाबा से टकराना कोई नहीं चाहेगा। हालांकि मान मनोव्वल, वक्त का तकाजा समेत अनेक हथियारों के साथ बाबा को मनाने का प्रयास किया गया। लेकिन जिस प्रकार एके को प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया गया है उसने साबित कर दिया कि बाबा का हठ योग तुड़वाने में कोई भी तुरुप का इक्का कारगर नहीं रहा। अब यह तो सभी जानते हैं कि मात्र प्रदेश उपाध्यक्ष बनने के लिए तो पीएमओ से एके को प्रदेश में भेजा नहीं गया। लेकिन एके के रणनीतिकारों की स्थिति यह है कि वे कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं है। अब आगे देखना होगा कि यह हठ योग क्या गुल खिलाता है। लेकिन जीत तो हठ योग की हुई। इसका संदेश भी सभी को मिल गया कि पंगा मत लेना।