कांग्रेस छोड़कर जितिन प्रसाद भाजपा में शामिल हो गये। लेकिन जिस प्रकार उन्हें ब्राह्मण चेहरा बताया जा रहा है, वह तो नहीं है। जितिन प्रसाद के पिता जितेंद्र प्रसाद को भी ब्राह्मण चेहरा नहीं माना गया। जितिन के भाजपा में शामिल होने के बाद उन्हें ब्राह्मण चेहरा बताने की होड़ सी शुरू हो गई है। जबकि, हकीकत यह है कि उत्तर प्रदेश के अधिकांश ब्राह्मणों को तो अब तक यह भी पता नहीं था कि जितिन प्रसाद ब्राह्मण है। इतना अवश्य रहा है कि उन्हें राज घराने से जोड़कर देखा जाता रहा है। यदि शाहजहांपुर अथवा उसके आसपास के क्षेत्रों को छोड़ दें तो ऐसा नहीं लगता कि जितिन का कोई बहुत बड़ा जनाधार हो। जबकि उनके हम उम्र ज्योतिरादित्य सिंधिया का मध्य प्रदेश में खुद का जनाधार है। वे मुख्यमंत्री की दौड़ में भी थे। इसके साथ ही जितिनि के भाजपा में शामिल होने पर कहा जा रहा है कि जितिन से योगी को खतरा है। वर्तमान परिस्थितियों में योगी को अभयदान मिल चुका है।
ऐसे में कोई कैसे बाबा के लिए खतरा हो सकता है यह समझ से परे है। एक तथ्य यह भी है कि लोकसभा चुनाव जितिन हार चुके हैं। उन्हें लगता है कि प्रदेश में कांग्रेस का भविष्य नहीं है। इन परिस्थितियों में कांग्रेस में लंबे समय तक बने रहना कोई औचित्यपूर्ण नहीं लगता। हालांकि भाजपा में उन्हें अपना भविष्य नजर आता है। यदि ब्राह्मण चेहरों की बात करें तो भाजपा में ब्राह्मण चेहरों की कमी नहीं है। बस उन चेहरों को आगे लाकर चमक देने की आवश्यकता है। यदि कोई प्लानिंग कर रहा हो कि जितिन को ब्राह्मण चेहरे के नाम पर आगे किया जाये, लेकिन ब्राह्मण समाज उन्हें अपना नेता स्वीकार करेगा यह वर्तमान हालात में तो कहीं नजर नहीं आ रहा। जितिन अब भाजपाई हो गये हैं। इस विशाल समुद्र में पार्टी उनका उपयोग किस प्रकार करेगी यह समय आने पर ही पता चल पायेगा।