तर्राष्ट्रीय मादक द्रव्य एवं नशा निरोधक दिवस प्रत्येक वर्ष 26 जून को समूची दुनिया में मनाया जाता है। नशीली वस्तुओं और पदार्थों के कहर एवं प्रकोप से मुक्ति हेतु ‘संयुक्त राष्ट्र महासभा’ ने 7 दिसम्बर, 1987 को इस दिवस को मनाने का निर्णय लिया था। यह एक तरफ लोगों में नशामुक्ति की चेतना जगाता है, वहीं दूसरी ओर नशे के लती लोगों के उपचार की दिशा में भी महत्त्वपूर्ण कार्य करता है। देश एवं दुनिया में दिन-प्रतिदिन शराब, मादक पदार्थों व द्रव्यों के सेवन की बढ़ती हुई प्रवृत्ति को रोकने के लिए एक जन-अभियान रूप में यह दिवस मनाया जाता है। समाज में बढ़ती हुई मद्यपान, तंबाकू, गुटखा, सिगरेट की लत एवं नशीले मादक द्रव्यों, पदार्थों के दुष्परिणामों के कारण अनेक जिन्दगियां आज मौत की अंधी सुरंगों में धंस रही है।
विश्व की गम्भीर समस्याओं में प्रमुख है नशीले पदार्थों का उत्पादन, तस्करी और सेवन की निरंतर हो रही वृद्धि। नई पीढ़ी इस जाल में बुरी तरह कैद हो चुकी है। आज हर तीसरा व्यक्ति किसी न किसी नशे का आदी हो चुका है। नशीले पदार्थों के छोटे-छोटे पाउचों से लेकर तेज मादक पदार्थों, औषधियों तक की सहज उपलब्धता इस आदत को बढ़ाने का प्रमुख कारण है। इस दीवानगी को ओढ़ने के लिए प्रचार माध्यमों ने भी भटकाया है। सरकार भी विवेक से काम नहीं ले रही है। कोरोना महासंकट के लॉकटाउन के दौरान हमने सरकारों की छटपटाहट शराब की दुकानों को खोलने को लेकर देखी। सरकार की आर्थिक आमदनी का बहुत बड़ा जरिया है नशे का उत्पाद एवं व्यापक स्तर पर इंसानों की धमनियों तक इसे पहुंचाना। वे शराबबन्दी का नारा देती है, नशे की बुराइयों से लोगों को आगाह भी करती है और शराब, तम्बाकू का उत्पादन भी बढ़ा रही है। राजस्व प्राप्ति के लिए जनता की जिन्दगी से खेलना क्या किसी लोककल्याणकारी सरकार का काम होना चाहिए?
यह सर्वविदित है कि नशे की संस्कृति युवा पीढ़ी को गुमराह कर रही है। अगर यही प्रवृत्ति रही तो सरकार, सेना और समाज के ऊंचे पदों के लिए शरीर और दिमाग से स्वस्थ व्यक्ति नहीं मिलेंगे। एक नशेड़ी पीढ़ी का देश कैसे अपना पूर्व गौरव प्राप्त कर सकेगा? प्रसिद्ध फुटबाल खिलाड़ी मैराडोना, पॉप संगीत गायक एल्विस प्रिंसले, तेज धावक बेन जॉनसन, युवकों का चहेता गायक माईकल जैक्सन, ऐसे कितने ही खिलाड़ी, गायक, सिने कलाकार नशे की आदत से या तो अपनी जीवन लीला समाप्त कर चुके हैं या बरबाद हो चुके हैं। नशे की यह जमीन कितने-कितने आसमान खा गई। विश्वस्तर की ये प्रतिभाएं नशे की लत के कारण कीर्तिमान तो स्थापित किए हैं, पर नई पीढ़ी के लिए स्वस्थ विरासत नहीं छोड़ पाई हैं। नशे की ओर बढ़ रही युवापीढ़ी बौद्धिक रूप से दरिद्र बन रही है। जीवन का माप सफलता नहीं सार्थकता होती है। सफलता तो गलत तरीकों से भी प्राप्त की जा सकती है। जिनको शरीर की ताकत खैरात में मिली हो वे जीवन की लड़ाई कैसे लड़ सकते हैं? आये दिन जगह-जगह शराब के ठेकों पर जहरीली शराब के पीने से सैकड़ों लोग मर जाते हैं। आए दिन आप देखते हैं कि हर सड़क पर नशा करके वाहन चलाने वाले ड्राईवर दुर्घटना के शिकार हो जाते हंै व दूसरे निर्दोष राहगीर या यात्री भी मारे जाते हैं। कितने ही परिवारों की सुख-शांति परिवार का मुखिया शराब के साथ पी जाता है। बूढ़े मां-बाप की दवा नहीं, बच्चों के लिए कपड़े-किताब नहीं, पत्नी के गले में मंगलसूत्र नहीं, चूल्हे पर दाल-रोटी नहीं, पर बोतल रोज चाहिए। अस्पतालों के वार्ड ऐसे रोगियों से भरे रहते हंै जो अपनी जवानी नशे को भेंट कर चुके होते हैं। ये तो वे उदाहरणों के कुछ बिन्दु हैं, वरना करोड़ों लोग अपनी अमूल्य देह में बीमार फेफड़े और जिगर सहित अनेक जानलेवा बीमारियां लिए एक जिन्दा लाश बने जी रहे हैं पौरुषहीन भीड़ का अंग बन कर। पिछले दो दशकों में मद्यपान करने वाली महिलाओं की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। विशेष कर उच्च तथा उच्च मध्यम वर्ग की महिलाओं में यह एक फैशन के रूप में आरंभ होता है और फिर धीरे-धीरे आदत में शुमार होता चला जाता है। महिलाओं में मद्यपान की बढ़ती प्रवृत्ति के संबंध में किए गए सर्वेक्षण दशार्ते हैं कि करीब 40 प्रतिशत महिलाएँ इसकी गिरफ्त में आ चुकी हैं। इनमें से कुछ महिलाएँ खुलेआम तथा कुछ छिप-छिप कर शराब, सिगरेट एवं अन्य नशों का सेवन करती हैं। महानगरों और बड़े शहरों की कामकाजी महिलाओं के छात्रावासों में यह बहुत ही आम होता जा रहा है। अमेरिका में किए गए अनुसंधानों से पता चला है कि गर्भपात का खतरा शराब का सेवन करने वाली महिलाओं में अधिक रहता है। नशे की कितने जानलेवा तौर-तरीकें इजाद हो रहे हैं। स्कूलों के बाहर नशीले पदार्थों से युक्त टॉफियां व आईसक्रीम मिलती है। पाचन शक्ति के लिए बनी देशी औषधियों को नशे के लिए खरीदा जाता है। जिस कस्बे में ऐसी दवाइयों की बोतलों की खपत वर्ष भर में कुछ दर्जन से ज्यादा नहीं हो सकती वहां हजारों बोतलें बिकती हैं।
दर्द को कम करने वाली अंग्रेजी दवाइयों की गोलियां और इन्जेक्शनों को नशे के लिए प्रयोग किया जाता है। आयोडेक्स जैसी जोड़ों के दर्द में मालिश करने के लिए काम आने वाली दवा को डबलरोटी पर मक्खन की जगह लगाकर खाते हैं व उससे नशा होता है। अनेक ऐसे तरीके नशेड़ियों ने अपना लिए हैं, जो शराब और तम्बाकू से भी ज्यादा हानिकारक हैं। चिकित्सकीय आधार पर देखें तो अफीम, हेरोइन, चरस, कोकीन, तथा स्मैक जैसे मादक पदार्थों से व्यक्ति वास्तव में अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है एवं पागल तथा सुप्तावस्था में हो जाता है। ये ऐसे उत्तेजना लाने वाले पदार्थ हैं, जिनकी लत के प्रभाव में व्यक्ति अपराध तक कर बैठता है। मामला सिर्फ स्वास्थ्य से नहीं अपितु अपराध से भी जुड़ा हुआ है। कहा भी गया है कि जीवन अनमोल है। नशे के सेवन से यह अनमोल जीवन समय से पहले ही मौत का शिकार हो जाता है या अपराध की अंधी गलियों में धंसता चला जाता है। लगता है प्रतिदिन हजारों युवा लोग स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह रहकर इस प्रकार के तेज एवं घातक नशे करने के तरीके अपना रहे हैं। ऐसी कई चाय व पान की दुकाने हैं जिन्होंने छोटे-से धन्धे से बिल्डिंगें खड़ी कर लीं। दूर-दूर से चलकर लोग उनकी ही दुकानों पर चाय पीने या पान खाने पहुंचते हैं। ये दुकानदार लोग चाय में अफीम के डोडे व पान में नशीले पदार्थ मिलाकर लोगों को हमेशा के लिए अपने स्थायी ग्राहक बना लेते हैं। हजारों-लाखों लोग अपने लाभ के लिए नशे के व्यापार में लगे हुए हैं और राष्ट्र के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। चमड़े के फीते के लिए भैंस मारने जैसा अपराध कर रहे हैं।
अणुव्रत आन्दोलन ने 80-90 के दशक में समाज व राष्ट्रीय जीवन में व्याप्त नशे के खिलाफ अपने कार्यक्रमों एवं अभियानों की निरन्तरता बनाये रखी, मैंने ह्यअणुव्रतह्ण पत्रिका के सम्पादक के तौर पर भव्य ह्वनशा मुक्ति विशेषांकह्ण निकाला। इन प्रयत्नों ने कुछ और व्यक्तियों को नशा मुक्ति की ओर सोचने को प्रेरित किया या बदलाव की भूमिका बनाने में भूमिका निभाई। आज नशामुक्ति आन्दोलनों का स्वर मंद हो गया है। लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी हाल में ह्यड्रग्स-फ्री इंडियाह्ण अभियान चलाने की बात कहकर इस राष्ट्र की सबसे घातक बुराई की ओर जागृति का शंखनाद किया है। उन्होंने चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा कि हमारे देश के युवा गुटका, चरस, गांजा, अफीम, स्मैक, शराब और भांग आदि के नशे में पड़ कर बर्बाद हो रहे हैं। इस कारण से वे आर्थिक, सामाजिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से विकलांगता की ओर अग्रसर हो रहे हैं।
मोदी ने नशे की बढ़ती प्रवृत्ति के कारणों की चर्चा करते हुए कहा कि मुझे लगता है जिनके जीवन में कोई ध्येय नहीं है, लक्ष्य नहीं है, जीवन में एक खालीपन है, वहां ड्रग्स का प्रवेश सरल होता है। ड्रग्स से अगर बचना है और अपने बच्चे को बचाना है, तो उसे ध्येयवादी बनाइए। जीवन में कुछ अलग करने के इरादे वाला बनाइए, बड़े सपने देखने वाला बनाएं। फिर बाकी बेकार तथा नकारात्मक चीजों की तरफ उनका मन ही नहीं लगेगा। किसी विद्वान ने कहा है कि अन्धकार का कोई अस्तित्व नहीं होता है। प्रकाश का अभाव ही अन्धकार है। कमरे में फैले अन्धेरे को लाठी से भगाने से वह दूर नहीं होगा इसके लिए एक दीपक जलाने की आवश्यकता है।(सभार)
ललित गर्ग
स्वतंत्र लेखक एव ब्लॉगर