
रविवार के दिन दिल्ली- मेरठ हाइवे पर बंबे के किनारे स्थित शमशान घाट जिसे उखलारसी शमशान घाट कहा जाता है पर अंतिम संस्कार के लिए गये 22 लोग हालांकि प्रशासन 19 बता रहा है कि मौत हो गई।
यह मौत शमशान घाट का लेंटर गिरने से हुई। जिले में इतनी बड़ी घटना शायद पहले कभी नहीं हुई। इस घटना को ठेकेदार, इंजीनियरों एवं प्रशासन की मिलीभगत का परिणाम माना जा सकता है।
यदि गाजियाबाद जिले का इतिहास उठाकर देखा जाये तो इतनी बड़ी घटना शायद ही कभी हुई हो। एक बिल्डिंग बन जाती है। बिल्डिंग के बनने में ठेकेदार की जितनी जिम्मेदारी है उससे कम जिम्मेदारी उन अभियंताओं की भी नहीं होती जो निर्माण कार्य होने के बाद उसे स्वीकृति प्रदान करते हैं। नगर पालिका के जेई की तो पूरी जिम्मेदारी होती है कि वह समय समय पर निर्माण कार्य की जांच करें। इसके साथ ही निर्माण कार्य सही हुआ है इसकी पुष्टि लोक निर्माण विभाग के अवर अभियंता एवं अधिशासी अभियंता करते हैं। इसके बाद ही बिलों का भुगतान होता है। इसका अर्थ हुआ कि सभी जिम्मेदार लोग आपस में मिले हुए थे।
निर्माण कार्य कैसा हुआ है इसे देखे बगैर सभी जिम्मेदार लोग मुहर लगाते चले गये कि निर्माण कार्य ठीक है। इस नरसंहार के लिए इन लोगों के साथ ही प्रशासन के अधिकारी भी अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकते। इसका कारण यह है कि निर्माण कार्यों की जांच की जिम्मेदारी प्रशासनिक अधिकारियों की भी है।
यह हो सकता है कि बड़े अधिकारी नीचे के अधिकारियों पर कार्रवाई कर अपने को बचाने का खेल चलेगा। लेकिन क्या गाजियाबाद के लोग इस नरसंहार के लिए जिम्मेदार लोगों को माफ कर पायेंगे। यदि कहा जाये तो यह पूरा मामला अफसर-नेता-ठेकेदार के गठजोड़ का परिणाम है। पिछले लंबे समय से देखा जा रहा है कि अफसर- ठेकेदार एवं नेताओं की मिलीभगत से ही निर्माण कार्य हो रहे हैं। कब ठेका छूटा, कब टेंडर हुए किसी को कानोंकान खबर तक नहीं होती। अब तो जमाना यह आ गया है कि सबकुछ ठेकेदार ही करता है। नेता व अफसर मजे करते हैं। अब जब तक दोषियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती दैनिक अथाह भी अपनी आवाज बुलंद करता रहेगा।
