Dainik Athah

विधान परिषद चुनाव … इन्हें कहते हैं पढ़े लिखे अनपढ़

इस चुनाव में 11 हजार से ज्यादा वोट रद्द घोषित किये गये

भाजपा के बागी नहीं छू सके चार सौ का भी आंकड़ा

अथाह संवाददाता, गाजियाबाद।
विधान परिषद चुनाव ने पढ़े लिखे कहे जाने वाले मतदाताओं की भी पोल खोलकर रख दी। इस चुनाव ने यह बताया कि पढ़े लिखे अनपढ़ कैसे होते हैं। इस चुनाव में 11 हजार से ज्यादा वोट रद्द घोषित किये गये। इसके साथ ही कांग्रेस प्रत्याशी व भाजपा के बागी की स्थिति भी बता दी।
बता दें कि एक दिसंबर को हुए विधान परिषद के स्नातक चुनाव के परिणाम पांच दिसंबर को घोषित हो गये। लेकिन मतगणना सीट पर नजर डालने पर आंखे खुल गई कि पढ़े लिखे मतदाताओं की भी क्या ऐसी स्थिति हो सकती है।

इस चुनाव में कुल 123977 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। मतदाताओं को प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय वरीयता के मत के अनुसार प्रत्याशियों के नाम के सामने 1, 2 अथवा 3 लिखना था। लेकिन 11 हजार 302 मतदाताओं ने वरीयता तो दर्ज की। साथ ही उन्होंने अपने विचार भी मत पत्र पर दर्ज कर दिये। इसमें किसी ने लिखा दिनेश गोयल भले व्यक्ति है, हम आपके साथ है। किसी ने लिखा आप जैसा सीधा सादा व्यक्ति राजनीति में है इसके साथ ही बड़ी संख्या में लोगों ने शिक्षक संघ ओम प्रकाश शर्मा गुट के हेम सिंह पुंडीर के समर्थन में भी विचार लिख दिये।

जानकारी के अनुसार इसमें सबसे अधिक वोट भाजपा प्रत्याशी दिनेश गोयल एवं दूसरे स्थान पर हेम सिंह पुंडीर के रद्द हुए। रद्द वोट की संख्या को देखकर मतगणना में लगे अधिकारी व कर्मचारी भी चौंक गये कि ये कैसे स्नातक अथवा पढ़े लिखे लोग है जिन्होंने जोश में अपने ही वोट को रद्द करवा दिया।

राजनीतिक गलियारों में डा. हरविंद्र कुमार सर्जन की चर्चा
इसके साथ ही चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी जेके गौड़ को चौथे नंबर संतोष करना पड़ा। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है तो डा. हरविंद्र कुमार सर्जन की। बसपा समर्थित कहे जाने वाले डा. हरविंद्र ने 8925 वोट प्राप्त कर सभी को चौंका दिया था। जबकि चुनाव में वे कहीं नजर नहीं आ रहे थे। इनके साथ ही बुलंदशहर की अर्चना शर्मा ने भी 6163 वोट प्राप्त कर चौंकाया।

भाजपा के बागी प्रत्याशी चार सौ कम पर सिमटे
भाजपा प्रत्याशी दिनेश गोयल को बागी प्रिंस कंसल को लेकर चिंता थी। इसके लिए पार्टी ने प्रयास भी किये थे कि उन्हें कुश पुरी की तरह समझा कर बैठाया जाये। भाजपा सूत्रों के अनुसार उनकी मांगे ऐसी थी कि उन्हें स्वीकार नहीं किया जा सकता था। पूरी भाजपा की नजर प्रिंस कंसल को मिलने वाले मतों पर थी। उन्हें मात्र 376 वोट मिले। इसके बाद पार्टी ने राहत की सांस ली।

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