शिव शंकर ज्योतिष एवं वास्तु अनुसंधान केंद्र गाजियाबाद के आचार्य शिवकुमार शर्मा ने बताया कि इस वर्ष बसंत पंचमी महोत्सव 2 फरवरी को मनाया जाएगा। यद्यपि उस दिन प्रातःकाल 9:14 बजे तक चतुर्थी तिथि है। उसके पश्चात पंचमी तिथि आ जाएगी । जो अगले दिन प्रातः काल सूर्य उदय से पहले ही 6:52 बजे ही समाप्त हो जाएगी। क्योंकि 3 तारीख को सूर्योदय दिल्ली के अक्षांश के अनुसार 7:12 बजे उदय होगा। उदयकालीन षष्ठी तिथि रहेगी। इसलिए बसंत पंचमी का पर्व दो फरवरी को ही मनाया जाएगा।इस दिन रविवार को उत्तराभाद्रपद नक्षत्र है ,जो स्थिर योग बनाता है। 27 योगों में से 9:14 बजे से साध्य योग बनेगा।स्थिर और साध्य योग पूरे दिन रात रहेंगे। बसंत जैसे विशिष्ट पर् में स्थिर और साध्य योग का बहुत ही महत्व है।इस दिन किया गया कोई भी कार्य सफलता को प्राप्त करता है और स्थिर रहता है।बसंत पंचमी को मां सरस्वती का जन्मोत्सव मनाया जाता है। विद्या, बुद्धि, ज्ञान और विवेक की देवी मां सरस्वती का पूजन, आवाहन तथा हवन आदि का आयोजन करना बहुत उत्तम रहता है। *कैसे करें मां सरस्वती की पूजा*बसंत पंचमी को प्रातः काल उठकर नित्य कर्म के बाद स्नान आदि के पश्चात पीले अथवा सफेद वस्त्र धारण करें। अपने घर के मंदिर में मां सरस्वती की प्रतिमा को स्थापित करें। सफेद पुष्प की माला अर्पित करें। चंदन ,रोली कलावा आदि के द्वारा मां को अर्पण करें । सरस्वती मां को सफेद पुष्प या पीले पुष्प प्रिय होते हैं। इन्हीं से मां का पूजन करें।सफेद मिष्ठान्न, पंचमेवा ,पंचामृत आदि पदार्थों से मां को भोग लगाएं।निम्नलिखित मंत्रों में से किसी एक मंत्र का जाप करें। 1.ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वती देव्यै नमः।2.ॐ सरस्वत्यै नमः।3.ॐ वागदेव्यै च विद्महे कामराजाय धीमहि। तन्नो देवी प्रचोदयात्।4.*या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता*।*या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना*।*सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा*।।बसंत पंचमी में शिक्षा संस्थानों , विद्यालयों में सरस्वती की पूजा व यज्ञ का आयोजन किया जाता है । बसंत पंचमी से बसंत ऋतु का आरंभ हो जाता है। खेतों में सरसों के पीले फूल और प्रकृति में सौंदर्य वर्धन, पेड़ों में नव कलिकाएं उत्पन्न होती हैं। प्रकृति में बदलाव आता है ,शीत ऋतु का प्रकोप कम हो जाता है। कोयल के मधुर गीत से वातावरण मदमस्त हो जाता है ग्रामीण क्षेत्रों में होली से 40 दिन पहले अर्थात बसंत पंचमी को बसंत रखा जाता है। अर्थात गांव में अथवा शहर में जिस स्थान पर होली का दहन होने का स्थान होता है, वहां पर मंत्रोच्चारण के साथ लकड़ी का एक दंड गाड़कर शुरुआत करते हैं। इसके पश्चात प्रतिदिन ग्रामवासी बालक, युवा पेड़ों की सूखी लकडियां ,पत्तियां आदि इकट्ठे करते रहते हैं और होलिका के दिन का दहन करते हैं। *2 फरवरी दिन रविवार को बसंत रखने का मुहूर्त मध्यान्ह 11:36 बजे से 12: 24 बजे तक अभिजीत मुहूर्त में बहुत श्रेष्ठ रहेगा।*जो विद्यार्थी पढ़ाई लिखाई में कमजोर है। उनको निरंतर सरस्वती मां के चित्र पर सफेद पुष्प अर्पण करके *ओम् ऐं सरस्वत्यै नमः* का जाप करना चाहिए।पंडित शिवकुमार शर्मा, ज्योतिषाचार्य एवं वास्तु कंसलटेंट