Dainik Athah

हरप्रसाद शास्त्री के 97वें जन्म तिथि पर विशेष

सामाजिक-सांस्कृतिक गतिविधियों के केंद्र बिंदु थे पं. हरप्रसाद शास्त्री

-योग्य शिक्षक, संस्कृत के विद्वान, हिंदी के श्रेष्ठ गीतकार-कवि होने के साथ साथ समाजसेवी व साहित्य प्रेमी थे

-ग़ाज़ियाबाद की सांस्कृतिक-सामाजिक, राजनीतिक कार्यक्रमों का एकमात्र स्थल ‘हिन्दी भवन’ हरप्रसाद शास्त्री जी की देन है।

विशेष आलेख

अशोक कौशिक

गाजियाबाद के लोहिया नगर स्थित हिन्दी भवन एवं गाज़ियाबाद लोक परिषद के संस्थापक स्वं हरप्रसाद शास्त्री जी को आज हम ही नही, बल्कि पूरा गाज़ियाबाद शहर उनके 97वें जन्मदिन पर उन्हें अपनी विन्रम भाव से नमन करते हुए श्रद्धांजलि देता है।

साथ ही उनके द्वारा शहर में कवि सम्मेलनों को शुरु कराने की परंपरा के सूत्रधार होने व वर्तमान में ग़ाज़ियाबाद की सांस्कृतिक-सामाजिक, राजनीतिक कार्यक्रमों का एकमात्र स्थल ‘हिन्दी भवन’ का अनमोल तोहफा उपलब्ध कराने के प्रति स्वर्गीय पंडित हरप्रसाद शास्त्री जी के प्रति अपनी कृतज्ञता व सम्मान प्रकट करता है। यह शहर हमेशा ही उनकी हिन्दी के प्रचार प्रसार व समाजसेवा के लिए ऋणी रहेगा।

शास्त्री जी का जन्म 15 अक्टूबर 1923 को हापुड़ तहसील के गांव श्यामपुर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम पंडित सोहनलाल शर्मा व माता जी का नाम ज्वाला देवी था। वर्ष 1942-43 में गाज़ियाबाद आकर बसे थे, जहां 8 मार्च, 1992 को वे स्वर्ग सिधार गये थे।

शास्त्री जी की प्राथमिक शिक्षा ग्राम दायरा की प्राइमरी पाठशाला में हुई। बाद में उन्होंने संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी से शास्त्री की परीक्षा पास की थी। जिसके बाद वे गाजियाबाद में ही श्री सनातन धर्म इंटर कॉलेज में अध्यापक हो गये थे।

अध्यापन काल में ही हरप्रसाद शास्त्री जी ने आगरा विश्विद्यालय से हिन्दी व संस्कृत में स्नातकोत्तर की डिग्रियां ली। वे संस्कृत के विद्वान जरुर थे, मगर वे जीवन भर हिन्दी भाषा के उत्थान व प्रचार प्रसार में लगे रहे।

जब गाज़ियाबाद में हिन्दी का कोई वातावरण नहीं था, तब उन्होंने अपने विद्यार्थियों में हिन्दी के प्रति प्रेम जगाया। उन्होंने न केवल स्वयं हिन्दी मे कविताएं व गीत लिखे, बल्कि युवा पीढ़ी को भी हिन्दी साहित्य से जोड़कर लेखन के लिए मार्गदर्शन किया।

वे हिन्दी कवियों-लेखकों को ढूंढ-ढूंढ कर लाते थे और उनके लिये शहर में गोष्ठी व कवि सम्मेलन का आयोजन करते थे। कवि सम्मेलनों के लिये उन्होंने गाजियाबाद लोक परिषद का गठन किया था।

हर वर्ष गणतंत्र दिवस के मौके पर ये कवि सम्मेलन आयोजित होता है, जो करीब चार दशक से बदस्तूर जारी है। इस कवि सम्मेलन में देश का बड़े से बड़ा कवि आकर अपनी कविता पढ़ चुका है और लोक परिषद के बैनर तले कविता पाठ करके हर कवि खुद को गौरान्वित अनुभव करता है।

शास्त्री जी बहुत ही सहज, सरल हृदय व लक्ष्य के प्रति लगनशील व्यक्ति थे। वे ज्ञानवान होने के साथ ही गंभीर व जुझारू प्रवृत्ति के थे। हिन्दी साहित्य की सेवा, प्रचार प्रसार के दौरान कई बार उन्हें असफलता व आलोचना का भी शिकार होना पड़ा, लेकिन वे अपनी धुन के पक्के थे और स्थिति कितनी भी प्रतिकूल हो, वे कभी निराश नहीं होते थे, बल्कि और उत्साह के साथ उस कार्य को करने में जुट जाया करते थे।

शास्त्री के साथी रहे स्व. डॉ. ब्रजनाथ गर्ग ने उनके साथ का एक संस्मरण सुनाते हुए बताया था कि जिन दिनों वे लोग हिन्दी भवन के निर्माण के लिये प्रयासरत थे, उसी दौरान उन्हें करीब एक वर्ष के लिये अपने बच्चों के पास अमेरिका जाना पड़ा था।

तब उन्होंने उन्हें (डॉ. गर्ग को) एक बड़ा ही मार्मिक पत्र लिखा था, जिसमें बस जल्द से जल्द हिन्दी भवन का निर्माण शुरु हो जाने की ही चिंता जताई थी। अमेरिका से ही पत्र के माध्यम से वे उनसे हिन्दी भवन निर्माण संबंधी औपचारिकता पूर्ण करने का सुझाव देकर मार्गदर्शन करते रहते थे।

स्व. डॉ. ब्रजनाथ गर्ग का कहना है कि शास्त्री जी ने गाजियाबाद जैसे शुष्क कारोबारी व औद्योगिक नगर को साहित्यिक चेतना प्रदान की और शहर को साहित्य जगत में नई पहचान दी। यद्यपि वे व्यक्तिगत रुप से स्वयं के साहित्य प्रकाशन, प्रसारण व प्रचार के मोह से दूर ही रहे और सदैव दूसरों को आगे बढ़ने व नाम कमाने का मौका दिया। आज गाजियाबाद के लोग ही नहीं बल्कि देश भर से हिन्दी साहित्य से जुड़े लोग उन्हें सम्मान देते हुए उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

यहां मैं यह बताना आवश्यक समझता हूं कि हरप्रसाद शास्त्री जी से भले ही मेरा कोई सीधा वास्ता नही रहा, न ही मुझे उनके सानिध्य में उनसे कुछ सीखने का ही अवसर मिला, लेकिन इसके बावजूद मेरा उनसे गहरा रिश्ता था वे रिश्ते में मेरे नाना जी लगते थे।

तब मैं भले ही बालक होने के कारण उनकी शख्सियत के वाकिफ़ नहीं था मगर उनके वात्सल्य भरा आशीर्वाद मुझे मिला, जो मेरे लिए उनकी दुआओं व आशीर्वाद का ही फल है कि शहर में अपनी भी एक साहित्यकार की न सही एक जुझारू पत्रकार की तो है ही।

मैं अपनी व ‘हिन्द आत्मा परिवार’ की ओर से उन महान आत्मा को प्रणाम करता हूं। ईश्वर हमें सदबुद्धि व शक्ति दे ताकि हम उनके द्वारा शुरु किये जन कल्याणकारी कार्यों को आगे बढ़ाते रहें।

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