Dainik Athah

“किसान” : कविता

चीरकर धरती का सीना, 
बहाकर खून पसीना ,
तब कुछ पाता है ।
किसान कहलाता है ।

आंधी- बरसात में, 
दोपहर की ताप में ,
ठिठुरती सर्दियों में,
दिन और रात में ,
खुद को खपाता है ।
किसान कहलाता है ।

मन में आशा लिए , 
कई अभिलाषा लिए,
तिनका तिनका चुनता है,
बहुरंगी सपने बुनता है,
विफल हो जाता है ।
किसान कहलाता है।

कभी सूखा रुलाए ,
कभी बाढ़ सताए,
कभी दूसरी आफते ,
सिर पर मंडराये , 
सब सह जाता है।
किसान कहलाता है। 

फसल का दाम मिले ना, 
और कोई काम मिले ना, 
कर्ज की मार पड़े भारी, 
राह  में  ढेरों  दुस्वारी ,
आत्महत्या कर जाता है।
किसान कहलाता है ।



लेखक 
देवेंद्र कुमार
(चेयरमैन -संकल्प जन सेवा ट्रस्ट)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *