चीरकर धरती का सीना,
बहाकर खून पसीना ,
तब कुछ पाता है ।
किसान कहलाता है ।
आंधी- बरसात में,
दोपहर की ताप में ,
ठिठुरती सर्दियों में,
दिन और रात में ,
खुद को खपाता है ।
किसान कहलाता है ।
मन में आशा लिए ,
कई अभिलाषा लिए,
तिनका तिनका चुनता है,
बहुरंगी सपने बुनता है,
विफल हो जाता है ।
किसान कहलाता है।
कभी सूखा रुलाए ,
कभी बाढ़ सताए,
कभी दूसरी आफते ,
सिर पर मंडराये ,
सब सह जाता है।
किसान कहलाता है।
फसल का दाम मिले ना,
और कोई काम मिले ना,
कर्ज की मार पड़े भारी,
राह में ढेरों दुस्वारी ,
आत्महत्या कर जाता है।
किसान कहलाता है ।