Dainik Athah

“”राम जी महतो कुछ ऐसा कर गया”” :कविता

 मज़दूर राम जी महतो कुछ ऐसा कर गया।
वो चलते चलते ही मर गया,
कौन होगा इसका जिम्मेदार,
ऊपर वाला या सरकार???
लोक डाउन होते ही,
दिल्ली में तो खत्म था काम,
थोड़ा पैसा था उसके पास।
दोस्तो ने कमरा छोड़ दिया था,
सबने नाता तोड लिया था।
रहने का संसाधन न था।
जाना था बेगूसराय, 
घर जाने का साधन न था,
चल पड़ा घर की ओर,
सिर्फ पैरों की बदौलत,
उसकी हिम्मत थी, 
बस उसकी दौलत,
जेब मे कुछ थोड़े पैसे थे,
एक हाथ मे बिछोना था।
बिटिया के लिया कभी था,
दूसरे हाथ में वो खिलौना था।
कभी कहीं कुछ खाता,
कभी रुक जाता।
पैसे कम थे,घर की बड़ी दूरी थी।
एक समय ही खा पाऊंगा, 
यह उसकी मजबूरी थी।
खाऊंगा कुछ बनारस जाकर,
जिसकी थोड़ी दूरी थी।
घुसने से पहले शिव नगरी में,
उसका हौशला छूट गया।
गिरा जमी पर,हुआ बेहोश,
लगा फुटपाथ पर,
सर उसका फूट गया।
देखता उसको एक किसान,
पलटता उसको एक जवान।
सांसे उसकी चल रही थी,
हलचल बॉडी कर रही थी।
रास्ते मे जाते जाते,
अस्पताल के आते आते,
सांसो का धागा तोड़ दिया था।
सबसे रिश्ता  तोड़ दिया था।
तलाशी हुई तो,
कुछ उसके पास धन न था,
पोस्टमार्टम में देखा, 
पेट मे बिल्कुल अन्न न था।
न उसको कोरोना था।
बस हाथों में उसके,
बिटिया का खिलौना था।
अब उसको घर जाने का वाहन मिल गया।
मिले दो सिपाई भी उसको,
कुछ थोड़ा मान मिल गया।
चिल्लाए बापू अम्मा, 
देख बेटे की लाश।
पत्नी की आंखे पथराई,
टूट गई  सब उनकी आश।
बेटी देखे कभी खिलौना,
आकर रोई पापा के पास।
छोड़ गए क्यों पापा,
अब हम लेंगे कैसे सांस।
पसीना बहाया था,
परिवार और देश बनाने को।
इस व्यवस्था ने ली उसकी जान,
आखिर समय में न था खाने को।
क्या है उसकी जान की कीमत,
क्योंकि वो मजबूर था।
उसकी इज्जत जानी न किसी ने, क्योंकि वो मज़दूर था।
हमेशा मेहनत करता करता,
वो भूखा ही मर गया।
मजदूर राम जी महतो कुछ ऐसा कर गया।
चलते चलते ही मर गया।
कौन इसका जिम्मेदार।
ऊपर वाला या सरकार??? 

।।लेखक।।
नरेंद्र राठी
सदस्य - अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी

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