- आखिर क्यों दुर्दशा झेल रहे हैं मधुबन बापूधाम योजना के आवंटियों को
- छलनी में पानी की तर्ज पर कराए गए मधुबन बापूधाम योजना में विकास कार्य
अथाह संवादाता
गाजियाबाद। गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष के ‘ड्रीम प्रोजेक्ट’ मधुबन बापूधाम योजना के आवंटियों का कहना है कि वह तत्कालीन मुख्य अभियंता अनिल गर्ग के भ्रष्टाचार का कोढ़ भोगने को मजबूर हैं। मधुबन बापूधाम वेलफेयर सोसायटी के सचिव लीलाधर मिश्रा का कहना है कि योजना में विकास कार्य संपन्न कराने के नाम पर भ्रष्टाचार की वैतरणी बहाई गई। योजना में विकास कार्य के नाम पर प्राधिकरण की ओर से आरंभिक दौर में करोड़ों अरबों रुपए के टेंडर जारी किए गए। लेकिन बिजली, पानी, सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए यहां के आवंटी आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। श्री मिश्रा का कहना है कि तत्कालीन मुख्य अभियंता अनिल गर्ग का कथित भ्रष्टाचार उजागर होने के बाद यह प्रकरण जांच की प्रक्रिया से गुजर रहा है। न जांच का कोई नतीजा सामने आया है न ही उनकी समस्या का कोई समाधान निकाला है। बरसों से यहां के आवंटी नरकीय जीवन जीने को मजबूर हैं।
आज से करीब 15 साल पहले 1234 एकड़ भूमि पर मधुबन बापूधाम योजना को धरातल पर उतरने का काम शुरू हुआ था। यह योजना अपने प्रारंभिक चरण में ही चरमराने लगी थी। मुआवजे के लिए किसानों से विवाद के चलते शासन के दबाव में तत्कालीन अफसरों ने आंशिक रूप से अधिग्रहित भूमि पर ही विकास का ढांचा खड़ा करना शुरू कर दिया था। इसका नतीजा यह निकला कि योजना में मूलभूत सुविधाओं के लिए आनन-फानन में ही भारी भरकम राशि के टेंडर निकाले जाने लगे। करोड़ों, अरबों रुपए के टेंडर लेने के लिए ठेकेदारों में मारामारी मच गई थी। बताया जाता है कि सत्ता तक पहुंच रखने वाले रसूखदार ठेकेदार ही इस योजना में ठेके लेने में सबसे आगे रहे थे।
जानकारों का कहना है कि उस दौर में जीडीए के अभियंत्रण खंड की पौ बारह रहती थी। सड़क, बिजली, पानी, सीवर और उद्यान निर्माण के नाम पर जीडीए और सरकार दोनों हाथों से पैसा बहा रहे थे। सूबे में बुनकर और हथकरघा के सिमटते दायरे और जीडीए के वित्तीय रूप से कमजोर होने के बावजूद योजना में बुनकर मार्ट जैसा सफेद हाथी खड़ा किया गया। जिसके उपयोग को लेकर जीडीए अधिकारी आज भी उहापोह में हैं।
इसी सब के चलते मधुबन बापूधाम योजना में विद्युतीकरण के काम का भी टेंडर छोड़ा गया था। विवादों से करीब का नाता रखने वाले प्राधिकरण के तत्कालीन मुख्य अभियंता अनिल गर्ग पर आरोप है कि उन्होंने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाते हुए विद्युतीकरण का ठेका हासिल करने वाले ठेकेदार को महज चंद्र रुपए के क्षतिपूर्ति अनुबंधपत्र के आधार पर एक 1अरब, 64 करोड़, 41 लाख रुपए से भी अधिक का भुगतान किया था। इस भुगतान पर आॅडिट विभाग ने आपत्ति दर्ज की थी। अनिल गर्ग सेवा निवृत्त होकर प्राधिकरण से फुर्सत पा गए लेकिन उन पर आरोप निर्धारण का यह मामला बरसों से जांच फाइलों में दौड़ रहा है। मिश्रा का कहना है कि इस महाघोटाले की वजह से जीडीए के अधिकारी विकास कार्य के नए टेंडर छोड़ने से कतरा रहे हैं। मिश्रा का कहना है कि मीडिया और जीडीए अफसरों को एक बार स्वयं आकर देखना चाहिए कि उपाध्यक्ष अतुल वत्स के ‘ड्रीम प्रोजेक्ट’ की जमीनी हकीकत क्या है