नगर निगम ने मधुबन बापूधाम में बना दिया कचरे का डंपिंग ग्राउंड
जीना हुआ दुश्वार तो आवंटी पहुंचे ग्रीन ट्रिब्यूनल की शरण में, मिली राहत
अथाह संवाददाता
गाजियाबाद। गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष अपने ड्रीम प्रोजेक्ट को लेकर खासे उत्साहित हैं। उनके ड्रीम प्रोजेक्ट मधुबन बापूधाम की दयनीय स्थिति उनके दावे के धरातल पर उतरने में संदेह उत्पन्न कराती है। इलाके की स्ट्रीट लाइट विहीन टूटी सड़कें और झाड़-झंखाड़ में तब्दील पार्क इस बात की गवाही देते हैं कि इलाके की सूरत बदलने के लिए यहां विकास की गंगा बहानी पड़ेगी। लगभग 16 सौ एकड़ में फैली इस आवासीय योजना में विकास की गंगा बहाने के लिए वित्तीय संकट से जूझ रहे जीडीए के उपाध्यक्ष अतुल वत्स को भागीरथ प्रयास करना पड़ेगा। रही सही कसर नगर निगम ने इलाके में डंपिंग ग्राउंड बना कर पूरी कर दी। अस्थाई तौर पर बनाया गया डंपिंग ग्राउंड ने इलाके के लोगों का जीवन नरक बना दिया है।
जिससे निजात पाने के लिए यहां के आवंटियों को ग्रीन ट्रिब्यूनल का दरवाजा खटखटाना पड़ा है। ट्रिब्यूनल के आदेश के बाद इलाके के लोगों को नरकीय स्थिति से छुटकारा तो मिल जाएगा। लेकिन मधुबन बापूधाम में मुंह बाए खड़ी समस्याओं के पहाड़ से जीडीए उपाध्यक्ष अतुल वत्स निजात कैसे पाएंगे और उनका ड्रीम प्रोजेक्ट कैसे आकार लेगा यह कह और समझ पाना अभी मुश्किल है।
गौरतलब है कि जीडीए का कार्यभार ग्रहण करने के साथ ही उपाध्यक्ष अतुल वत्स ने मधुबन बापूधाम योजना पर फोकस करना शुरू कर दिया था। लगभग 16 सौ एकड़ में फैली यह योजना आज से 20 साल पूर्व अस्तित्व में आई थी। एक दशक पूर्व इसका ढ़ांचा खड़ा कर दिया गया था। अरबों रुपए खर्च कर यहां विकास की वैतरणी बहाई गई थी। विकास की उस वैतरणी से आवंटियों का तो भला हुआ नहीं अलबत्ता जीडीए के तत्कालीन मुख्य अभियंता और कई नामचीन ठेकेदार जरूर मालामाल हो गए। और तो और कई हजार करोड़ रुपए से तैयार किया जाने वाला प्राधिकरण का कार्यालय भी अपने अस्तित्व में आने की बाट जोहता रहा। जीडीए के कई तत्कालीन अधिकारी योजना में विकास के नाम पर हुई बंदरबांट और विकास की अनदेखी को कबूल करने के बजाए योजना की विफलता का ठीकरा किसानों के साथ मुआवजे के विवाद पर ही फोड़ते रहे। इसी का नतीजा है कि आज भी पूरी योजना अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है।
तकरीबन नौ माह पूर्व पूर्णकालिक उपाध्यक्ष के रूप में तैनात अतुल वत्स की घोषणाओं से महानगर वासियों के साथ-साथ मधुबन बापूधाम आवासीय योजना के आवंटियों में भी यह विश्वास जागा कि मधुबन बापूधाम योजना के दिन फिरने के साथ-साथ महानगर वासियों को ‘हरनंदी पुरम आवासीय योजना’ का तोहफा भी मिलने वाला है। लेकिन 20 साल पुरानी योजना की जमीनी हकीकत जीडीए उपाध्यक्ष अतुल वत्स के ड्रीम प्रोजेक्ट में सबसे बड़ी बाधा साबित हो रही है। मधुबन बापूधाम योजना पर मुख्य रूप से फोकस करने के बावजूद योजना की सूरत में मौके पर आंशिक सुधार तक नहीं आ पाया है। और तो और उनकी (श्री वत्स की) तमाम कोशिशों के बावजूद योजना में स्थापित अस्थाई डंपिंग ग्राउंड से भी यहां के आवंटियों को निजात नहीं मिल सकी है।
अभिनव चौधरी दिल्ली हाईकोर्ट में अधिवक्ता होने के साथ ही योजना के आवंटी भी हैं की ओर से, ग्रीन ट्रिब्यूनल के समक्ष अस्थाई डंपिंग ग्राउंड से निजात पाने के लिए एक रिट दायर की गई। जिसमें मधुबन बापूधाम वेलफेयर सोसायटी की ओर से माननीय हरित पंचाट को अवगत कराया गया कि बीते 3 साल से उन्हें इलाके में स्थापित किए गए अस्थाई डंपिंग ग्राउंड से उठने वाली असहनीय दुर्गंध के साथ जीना पड़ रहा है। जिसकी शिकायत तमाम प्लेटफार्म पर करने के बावजूद यहां के आवंटियों को किसी भी प्रकार की राहत प्रदान नहीं की जा रही है। जिसकी वजह से इलाके के लोग पलायन को मजबूर हैं। वैलफेयर एसोसिएशन के सचिव एल. डी. मिश्रा का कहना है कि यूं तो नगर निगम ने कूड़ा निस्तारण के लिए डंपिंग ग्राउंड गालंद में बनाया हुआ है। लेकिन वर्ष 2022 की कांवड़ यात्रा के दौरान मधुबन बापूधाम में निर्मित सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट की खाली भूमि पर तमाम विरोध के बावजूद अस्थाई डंपिंग ग्राउंड बना दिया गया। कांवड़ यात्रा संपन्न हो जाने के बावजूद नगर निगम ने यहां डाले गए कचरे का निस्तारण नहीं किया बल्कि वर्ष 2023 और 2024 में भी कांवड़ यात्रा के दौरान यही प्रक्रिया अपनाई गई। जिसके चलते मौके पर लगभग 60 हजार मीट्रिक टन कचरे का ढेर लग गया। श्री चौधरी और श्री मिश्रा का कहना है नरकीय स्थिति से निजात न मिलने की दशा में उन्हें ग्रीन ट्रिब्यूनल का दरवाजा खटखटाना पड़ा। जिसमें नगर आयुक्त, जीडीए उपाध्यक्ष, जिलाधिकारी के अलावा केंद्रीय व प्रादेशिक प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पदाधिकारियों को प्रतिवादी बनाया गया। इन सभी विभागों ने अपना पक्ष रखने के लिए आठ अधिवक्ताओं की सेवा लीं। बावजूद इसके फैसला वेलफेयर एसोसिएशन के पक्ष में आया।
यहां सबसे अहम पहलू यह है कि कचरा नगर निगम का योजना विकास प्राधिकरण की, सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट भी विकास प्राधिकरण का, तो क्या दो विभागों में सामंजस्य की कमी का नतीजा नागरिकों को भुगतना पड़ा। भविष्य में ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश पर कितना अमल होता है फिलहाल यह कहना जल्दबाजी होगी। और साथ ही यहां यह सवाल भी उठना लाजमी है कि नगर विकास मंत्रालय के दो विभागों में सामंजस्य के बगैर यह नगर स्मार्ट सिटी कैसे बनेगा?