अथाह ब्यूरो
नई दिल्ली। मोदी कैबिनेट ने गुरुवार को वन नेशन वन इलेक्शन को मंजूरी दे दी है। अब संसद में जल्द ही इसे पेश भी किया जा सकता है। सूत्रों ने बताया कि केंद्र सरकार यह विधेयक संसद के इसी शीतकालीन सत्र में ही ला सकती है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व में वन नेशन वन इलेक्शन के लिए एक कमेटी का गठन किया गया था, जिसकी रिपोर्ट हाल ही में सौंपी गई थी। इसी रिपोर्ट के बाद अब मोदी सरकार ने कैबिनेट बैठक में इसे मंजूरी दे दी। सूत्रों की मानें तो संसद में इसे सभी दलों से सुझाव लेने के लिए जेपीसी का भी गठन किया जा सकता है। यह कानून देशभर में समय-समय पर होने वाले चुनावों को एक साथ करवाने के लिए लाया जा रहा है। इसके जरिए विभिन्न चुनावों पर बार-बार होने वाले बड़े खर्चे से भी बचा जा सकेगा। हालांकि, विपक्ष देशभर में एक साथ चुनाव करवाए जाने के खिलाफ है।
केंद्र के लिए वन नेशन वन इलेक्शन को लागू करना इतना आसान नहीं होने वाला, क्योंकि इसके लिए उसे संविधान में संशेधन करने के लिए कम से कम छह विधेयक लाने होंगे। इसके लिए सरकार को संसद में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होने वाली है। राज्यसभा में एनडीए के पास 112 और विपक्ष के पास 85 सीटें हैं, जबकि दो तिहाई बहुमत के लिए सरकार को 164 वोटों की जरूरत होगी। इसी तरह लोकसभा में भी एनडीए के पास 292 सीटें हैं, जबकि दो-तिहाई का आंकड़ा 364 का है।
इसी वजह से सरकार चाहती है कि सभी दलों से बैठकर इस पर चर्चा हो और फिर उसके बाद ही इसे पास करवाया जाए। सिर्फ नेताओं से ही नहीं, बल्कि देशभर के बुद्धिजीवियों और राज्यों की विधानसभाओं के अध्यक्षों के साथ भी वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर चर्चा हो
सकती है। मोदी सरकार अगले हफ्ते इस बिल को संसद में पेश कर सकती है। सुत्रों के अनुसार, मोदी कैबिनेट ने बिल को मंजूरी दे दी है और वो बिल पर आम सहमति बनाना चाहती है। बिल पर व्यापक चर्चा के लिए सरकार इसे संयुक्त संसदीय समिति या जेपीसी के पास भेज सकती है। बिल का उद्देश्य 100 दिनों के भीतर शहरी निकाय और पंचायत चुनावों के साथ-साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराना है।
क्या है एक देश एक चुनाव की बहस?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 के स्वतंत्रता दिवस पर एक देश एक चुनाव का जिक्र किया था। तब से अब तक कई मौकों पर भाजपा की ओर एक देश एक चुनाव की बात की जाती रही है। ये विचार इस पर आधारित है कि देश में लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हों। अभी लोकसभा यानी आम चुनाव और विधानसभा चुनाव पांच साल के अंतराल में होते हैं। इसकी व्यवस्था भारतीय संविधान में की गई है।
पूर्व राष्ट्रपति कोविंद बोले- इससे जीडीपी भी बढ़ेगी
इस मुद्दे पर समिति की अध्यक्षता करने वाले कोविंद ने मीडिया से बात करते हुए कहा, “केंद्र सरकार को आम सहमति बनानी होगी। यह मुद्दा किसी पार्टी के हित में नहीं बल्कि पूरे देश के हित में है। यह एक बड़ा बदलाव लाएगा, यह मेरी राय नहीं बल्कि अर्थशास्त्रियों की राय है, जो मानते हैं कि इसके लागू होने के बाद देश की जीडीपी में 1 से लेकर 1.5 प्रतिशत की वृद्धि होगी।
क्या है एक राष्ट्र एक चुनाव के लाभ?
सरकार का कहना है कि एक साथ चुनाव कराने से धन और समय की बचत होगी।
प्रशासनिक व्यवस्था ठीक रहने के साथ सुरक्षा बलों भी तनाव नहीं होगा।
चुनाव प्रचार में ज्यादा समय मिलने के साथ विकास कार्यों भी ज्यादा हो सकेंगे।
वहीं, चुनावी ड्यूटी के चलते सरकारी कार्यों में भी दिक्कतें आती हैं।