Dainik Athah

मधुबन बापूधाम की बदहाली की तस्वीर बदलना है बड़ी चुनौती

  • आखिर कैसे सुधरेगी वित्तीय संकट से जूझ रहे जीडीए की आर्थिक सेहत
  • और भी कई बड़ी बाधाएं हैं जीडीए उपाध्यक्ष के ड्रीम प्रोजेक्ट में

अथाह संवाददाता
गाजियाबाद।
गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष अपने ड्रीम प्रोजेक्ट को लेकर जितने उत्साहित हैं, उससे अधिक चुनौतियां उनके सामने हैं। उनके ड्रीम प्रोजेक्ट की नींव जर्जर हो चुकी मधुबन बापूधाम योजना के कमजोर कंधों पर टिकी है। जिसकी वजह से उनके ड्रीम प्रोजेक्ट के साकार होने में संदेह उत्पन्न होता है। योजना के आवंटियों को एक मुसीबत से निजात मिलती है तो दूसरी समस्या मुंह बाए खड़ी हो जाती है। ऐसी ही एक समस्या नगर निगम ने इलाके में डंपिंग ग्राउंड बना कर खड़ी कर दी। इससे निजात के लिए आवंटियों को ग्रीन ट्रिब्यूनल का दरवाजा खटखटाना पड़ा। आवंटियों के अदालत का रुख करने से यह सवाल उठना लाजिमी है कि जीडीए का अन्य सरकारी विभागों से समन्वय कैसा है? अन्य विभागों से समन्वय के अभाव में उपाध्यक्ष अतुल वत्स के ड्रीम प्रोजेक्ट का सपना साकार कैसे होगा? इसका जवाब खुद उपाध्यक्ष को ही तलाशना होगा।

गौरतलब है कि मधुबन बापूधाम आवासीय योजना धरातल पर आई प्राधिकरण की आखिरी योजना है। कहते हैं कि इस योजना ने प्राधिकरण को वित्तीय रूप से कंगाली की राह पर डाल दिया है। लगभग बीस साल की अवधि में भी इलाके का समुचित विकास नहीं हो पाया है। सड़कों से लेकर स्ट्रीट लाइट भगवान भरोसे हैं। एक तरफ आवंटी सुविधाओं को तरस रहे हैं, दूसरी ओर प्राधिकरण अपनी आवासीय भूमि को खुले बाजार में मनमानी कीमतों पर बेच रहा है। योजना में प्राधिकरण की आरक्षित राशि के सापेक्ष भूमि का मूल्य पांच गुना प्राप्त हो रहा है। प्राधिकरण के आंकड़े बताते हैं कि योजना में आवासीय भूमि की उच्चतम दर लगभग 1 लाख 35 हजार रुपए प्रति वर्ग मीटर तक जा पहुंची है। मौजूदा समय में विकास एवं सुविधाओं की दृष्टि से वेव सिटी सबसे आगे होने की वजह से लोगों की पहली पसंद है। लेकिन भूमि की दर के मामले में वेव सिटी मधुबन बापूधाम की दर से पीछे है। वहां आज भी भूमि का बाजार मूल्य लगभग एक लाख रुपए प्रति वर्ग मीटर है।

वेव सिटी को फिलहाल विकास के मॉडल के रूप में देखा जाए तो भूमि की दर आसमान तक पहुंचा देने के बावजूद प्राधिकरण की मधुबन बापूधाम योजना वेव सिटी के सामने कहीं भी नहीं टिकती। 16 सौ एकड़ में फैली इस आवासीय योजना में विकास की गंगा बहाने के प्राधिकरण को अपने खजाने का मुंह खोलना होगा। खाली खजाने के साथ अतुल वत्स अपने ड्रीम प्रोजेक्ट को कैसे साकार कर पाएंगे इसका कोई ठोस संकेत अभी तक सामने नहीं आया है। अलबत्ता मीडिया से मुखातिब होते हुए अपने ड्रीम प्रोजेक्ट की बाबत वह अपने दावों को कुछ अधिक आत्मविश्वास से दोहराते जरूर हैं। श्री वत्स के अलीगढ़ विकास प्राधिकरण के कामकाज का लेखा-जोखा यह जरूर बताता है कि एक आवासीय योजना को मूर्त रूप देने में सूबे की सरकार ने श्री वत्स की पीठ थपथपाई थी। और शायद इनकी इसी कर्मठता और योग्यता के मद्देनजर ही इन्हें गाजियाबाद विकास प्राधिकरण की कमान सौंपी गई है।

गाजियाबाद विकास प्राधिकरण नाव रूपी अलीगढ़ विकास प्राधिकरण के मुकाबले एक बड़ा जहाज है। बड़ा होने के साथ-साथ ऐसा जहाज भी है जो वित्तीय संकट के चलते बार-बार डूबने के कगार पर पहुंच जाता है। यह तथ्य भी किसी से छिपा नहीं है की जीडीए की आमदनी का एक बड़ा हिस्सा कर्मचारियों व अफसरों के वेतन व वाहनों के रख-रखाव पर ही खर्च हो जाता है। ऐसे में ड्रीम प्रोजेक्ट के लिए अर्थ जुटाना निसंदेह एक मुश्किल चुनौती है।

मधुबन बापू धाम से कूड़ा एक सप्ताह पहले ही साफ कर दिया गया है। अब वहां पर ऐसी कोई समस्या नहीं है। नगर निगम की तरफ से आम जनता को किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं होने दी जायेगी। कूड़ा हटा दिया गया जिसे मौके पर जाकर देखा जा सकता है।
विक्रमादित्य सिंह मलिक नगर आयुक्त, गाजियाबाद


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