शर्मादीपावली अर्थात दीप +अवली, इसका अर्थ है दीपों की पंक्तियां। दीपक का गुण है प्रकाश ।*तमसो मा ज्योतिर्गमय* अर्थात् हे ईश्वर! हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। हमारा जीवन प्रकाशमान बने, हम सत्य ,निष्ठा और परिश्रम के अनुगामी बने ।जीवन में इसे ही प्रकाश कहते हैं। जो भी कार्य हम करें, पूर्ण लगन, निष्ठा, परिश्रम व सत्यता से करें तो प्रकाश आएगा ही। यही संदेश हमें दीपों का पर्व दीपावली देता है ।धनतेरस से आरंभ करके भैया दूज तक कई पर्व श्रृंखलाएं है। हर पर्व मानव कल्याण एवं समृद्धि से जुड़ा है ।धनतेरस धन्वंतरि जयंती के रूप में मनाते हैं। धनवंतरी सर्वप्रथम आयुर्वेद चिकित्सा के जनक कहे जाते हैं। उन्होंने ही मानव के स्वस्थ रहने के उपाय खोजें ।अमृत तत्व की खोज कर मानव और समाज के स्वास्थ्य की रक्षा की। धनधान्य मानव की दूसरी आवश्यकता है ।बिना अर्थ के मानव जीवन खोखला है इसलिए धन को मानव की दूसरी सबसे बड़ी आवश्यकता बताया गया है। प्रत्येक पदार्थ में सुख समृद्धि की खोज की गई है ।हमें कोई वस्तु खरीदनी हो अथवा बेचनी हो शुभ मुहूर्त को मान्यता दी गई है।इसलिए धनतेरस दीपोत्सव का प्रथम पर्व इसी कामना से मनाया जाता है।दूसरे दिन रूप चतुर्दशी अथवा नरक चतुर्दशी का पर्व आता है इस दिन भी सर्वप्रथम स्वास्थ्य को ही महत्व दिया गया है। प्रातकाल शरीर में तेल मालिश, उबटन लगा कर स्नान करने का विधान है। हमारा शरीर तेजोमय ,कांतिमान और स्वस्थ बने । इस हेतु रूप चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है।अज्ञान व अंधकार रूपी नरकासुर हमारे जीवन से दूर होकर हमारा जीवन प्रकाशित हो ,इसी उद्देश्य से हम इस पर्व को मनाते हैं।शाम के समय यम पूजा हेतु दीपदान करते हैं। हमारा घर अनिष्टता से मुक्त हो। किसी की अकाल मृत्यु ना हो, इसलिए शाम को मृत्यु के देवता यम को प्रसन्न करने के लिए दीपदान करने की परंपरा चली आ रही है।दीपावली का मुख्य पर्व कार्तिक अमावस्या को आता है। यह हमारे जीवन में प्रकाश और उल्लास का पर्व होता है* *जलाओ दिए पर ध्यान रहे इतना अंधेरा धरा पर कहीं रह न पाए*।अंधेरा चाहे भौतिक हो , वैचारिक हो या मानसिक हो ,इस दीपावली के पर्व पर उस अंधकार को दूर करने का संकल्प लेते हैं कि हमारे जीवन से इस प्रकार के समस्त अंधेरे दूर हो जाए और जीवन में आशा का भाव संचार हो ।जब हमारे मन मस्तिष्क से अज्ञान ,अंधकार और निराशा के तम छंट जाएंगे, तो अनगिनत दीपों का प्रकाश स्वयं ही प्रज्ज्वलित हो उठेगा। जहां प्रकाश है ,उत्साह है व निष्ठा है, लक्ष्मी स्वयं ही उनका वरण करती हैं। यह संदेश देता हुआ दीपावली पर्व सदैव ही हम सबका पथ प्रदर्शक है।मानव सभ्यता का विकास ग्राम, खेती ,पशु आदि से आरंभ हुआ था। और आज भी यह क्रम लगातार चला आ रहा है। प्रकृति प्रेम एवं उपरोक्त मानव कल्याण करने वाले परिवेश एवं पर्यावरण को धन्यवाद देने के लिए गोवर्धन पूजा का पर्व मनाते हैं ।हमारे सामाजिक संबंध भी सुदृढ़ हो, इस भाव को लिए भाई बहनों का प्रेम का प्रतीक भैया दूज जैसे पर्व हमें जीवन जीने की कला सिखाते हैं।वास्तव में यह दीपावली महोत्सव की यह संपूर्ण पर्व श्रृंखला सामाजिक चेतना , आर्थिक सुदृढता, प्रकाशमय जीवन जीने का संदेश देता है तथा हर प्रकार से धन धान्य समृद्धि और स्वास्थ्य का प्रतीक यह त्यौहार भारत भूमि का गौरव है।इस पर्व पर हम स्वास्थ्य ,समृद्धि, प्रकाश और प्रगति का आह्वान करते हैं।पंडित शिवकुमार शर्मा। ज्योतिषाचार्य एवं वास्तु कंसलटेंट अध्यक्ष- शिवशंकर ज्योतिष एवं वास्तु अनुसंधान केंद्र गाजियाबाद