सरकारी नुमाइंदों की सरपरस्ती में होता है जमीन का बंदरबाट
अथाह संवाददाता, गाजियाबाद। सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ की इन दिनों माफियाओं और बाहुबली समाज में आतंक फैलाने वालों पर टेढ़ी नजर है। दुबे एनकाउंटर कांड के बाद सरकार जिस तरह पूर्वांचल में माफियाओं और बाहुबलियों पर कहर बनकर टूटी है।
इससे पूर्वांचल में तो हड़कंप मचा है, लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में सरकारी जमीन पर कुंडली मारे बैठे लोगों पर कोई असर नहीं पड़ रहा है। क्योंकि उन्हें सरकारी अफसरानो का ही नहीं हुक्मरानों का भी प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष संरक्षण प्राप्त है।
गाजियाबाद में आज भी करोड़ों रुपए कीमत की सरकारी जमीन माफियाओं के शिकंजे में है। अकेले विजय नगर क्षेत्र में करोड़ों की जमीन लेखपाल व निगम के संपत्ति विभाग में बैठे भ्रष्ट अधिकारियों की सांठगांठ से जमीन माफियाओं के कब्जे में है।
तत्कालीन पटवारी प्रमोद शर्मा की जांच आख्या की। यदि अधिकारी निष्पक्ष जांच करें तो दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा। गलत तरीके से दी गई आख्या से निगम की तमाम बेशकीमती जमीन को भू माफिया ने कब्जा लिया। लेकिन शिकायत के बाद भी जांच के नाम पर वर्षों से कार्रवाई अधर में लटकी है।
सीएम योगी का एंटी भू माफिया अभियान एक साल में ही टाँय टाँय फिस्स हो गया। सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जों के मामले में सपा सरकार को पानी पी पी कर कोसने वाले योगी जी मोदी जी सत्ता पर काबिज होते ही जैसे सब भूल गए। सपा को भू माफियाओं की सरकार का तमगा देने वाले भाजपा सीएम ने सरकार गठन पर एंटी भू माफिया एंटी रोमियो जैसे ना जाने कितने डायलॉग ईजाद किए थे।
हालांकि शुरुआती दौर में अधिकारियों ने हाथ पांव चलाए, लेकिन बाद में सोचा कि शायद वह अपनी नौकरी का मकसद भूल गए। फिर तो शिकायतें महज कागजी घोड़ा साबित होने लगी। शिकायतों के सहारे अधिकारियों की जेब गर्म होने लगी।
हालात यह हो गई कि नगर निगम चाह कर भी जमीन माफियाओं के चंगुल से नहीं छुटा पाया। भाजपा सरकार ने ऐलान किया था कि सपा सरकार में कब्जाई गई सरकारी जमीन को हर हाल में बंधन मुक्त कराया जाएगा। लेकिन एक दो मामलों को छोड़ दें तो सब जस के तस है।
बता दें कि विजय नगर जोन के डूंडाहेड़ा की खसरा नंबर 1/2 मि, रकबा-1.3280 है.,खसरा नंबर 2/2 मि.रकबा,1.0620 है. व खसरा नंबर 34/5मि रकबा 3.4450 है, भूमि आज भी दबंगों के कब्जे में है । उक्त भूमि की कीमत करीब 10 करोड़ रुपये बताई जा रही है। निगम अधिकारी यदि पूरी इच्छाशक्ति से निष्पक्ष पैमाइश कर जमीन को बंधन मुक्त कराए तो निगम को होने वाली करोड़ों की राजस्व हानि से बचाया जा सकता है।
सूत्र बताते हैं कि सपा सरकार में उक्त भूमि को दबंगों ने फर्जी कागजात तैयार कर फर्जी नोटरी के जरिए उक्त भूमि अन्य खसरा नंबरों की आड़ में प्लाटिंग कर बेच दिया। पूर्व में नगर निगम संपत्ति अधिकारियों से स्थानीय लोगों ने शिकायत भी की लेकिन तत्कालीन संपत्ति अधिकारियों ने जमीन कब्जा मुक्त कराने की कोई पैरवी नहीं की। जिससे निगम को बैठे बैठाए करोड़ों की चपत लग गई। हालांकि सपा सरकार जाने के बाद भूमि पर अधबने कमरे खड़े है। मगर अधिकारियों में इच्छाशक्ति की कमी के चलते करोड़ों की जमीन दबंगों के शिकंजे में है।