कविता यदि तोड़ना है अरि का घमंड करों मजबूत अपने भुज दंड। दृढ़ करो इच्छाशक्ति को प्रगाढ़ करो देशभक्ति को। सबल करो अपना भंडारण स्पष्ट करो अपने उच्चारण । पहचानो, द्रोही परजीवी करों संगठित राष्ट्रहित जीवी। कलपुर्जों की करों समीक्षा संसाधनों की कठिन परीक्षा। शांत रखो अपने ललाट को संयमित रखो ठाठ बाट को। ताकत कमजोरी का हो बोध बढ़ने दो शत्रु का क्रोध । धमनी शिराएं अवरोध मुक्त हों राष्ट्रीय अंग चेतना युक्त हों। हों निश्चिंत, करों प्रहार प्रचंड यदि तोड़ना है अरि का घमंड। मजबूत करो अपने भुज दंड।।
कवि : डा.प्रेम किशोर शर्मा निडर