कविता तुमने फूलों को देखा, मैंने शूलों को देखा। तुमने देखी भव्य इमारत, मैंने चूलों को देखा। दोनों सच हैं पर दोनों झूठ, आधा तुमसे आधा मुझसे गया हैं छूट। जो छूटा है वह रुठा है, कोई सच्चा कोई झूठा है। जो तेरा सच वह मेरा झूठ, जो मेरा सच वह तेरा झूठ। यह जीवन का कड़वा घूंट, अपने भी जाते हैं रूठ। चलो समग्रता से अब देखें, जाये ना कुछ भी अब छूट, जान लिया जब सच सखी, ना होवे अब कोई फूट। सच फूल है सच शूल है, सच्च इमारत सच्च चूल है। हर विवाद,मेरी तेरी भूल , विचार साम्य तो सब अनुकूल।।
कवि : डॉ. प्रेम किशोर शर्मा निडर