रविवार का दिन देश के संसदीय इतिहास में काला अध्याय जोड़ गया। देश की संसद में कृषि विधेयकों को पारित करने के दौरान विपक्ष ने जो रवैया दिखाया वह शर्मशार करने वाला था।
विधेयकों को जिस प्रकार माननीयों द्वारा फाड़ा गया एवं राज्यसभा के उप सभापति जो पिछले सप्ताह ही दूसरी बार निर्वाचित घोषित हुए हैं के साथ सदस्यों का व्यवहार आहत करने वाला था। कागज ही नहीं फाड़े गये, बल्कि कांग्रेस, टीएमसी, आप, डीएमके सांसदों ने जो व्यवहार एकजुट होकर दिखाया उससे सभी अचंभित रह गये।
ऐसा नहीं कि संसद में पहली बार इस प्रकार का दृष्य देखने को मिला हो। इससे पहले भी विपक्षी सदस्यों ने अनेक मौकों पर आपे से बाहर होकर संसद के साथ ही सांसद की मर्यादा को तार तार किया है।
जिस प्रकार का रवैया देखने को मिला उसने यह बताया है कि कहीं न कहीं राज्यसभा के उप सभापति के चुनाव में हार की खीज भी विपक्षी सदस्य उतार रहे थे। जिस प्रकार का रवैया उच्च सदन के सदस्यों का रहा उप्र समेत देश के अन्य राज्यों की विधानसभाओं में भी अक्सर देखने को मिल जाता है।
लेकिन संसद में सदस्यों का रवैया देश ही नहीं विदेश में बैठे लोग भी देखते हैं। इनके रवैये से विश्व में क्या संदेश जाता होगा इसे समझा जा सकता है। क्या ऐसे सदस्यों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होनी चाहिये।
यह यक्ष प्रश्न आज राज्यसभा सभापित एवं देश के उप राष्ट्रपति के सामने भी खड़ा है। इस प्रकार के रवैये पर रोक लगाने के लिए सार्थक पहल भी होनी चाहिये जिससे इस प्रकार के हुड़दंग संसद एवं विधानसभाओं में रोके जहा सके।