Dainik Athah

ज़ुल्म की खि़लाफ़त में जो जान दांव पर लगाते हैं, वो इतिहास में शहीदों की तरह याद किये जाते है:अखिलेश यादव

अथाह ब्यूरो, कोलकाता : धर्मतला में त्णमूल कांग्र्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा आयोजित शहीद रैली में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव का सम्बोधनः- ‘‘ज़ुल्म की खि़लाफ़त में जो जान दांव पर लगाते हैं, वो इतिहास में शहीदों की तरह याद किये जाते है‘‘।
    21 जुलाई का दिन (30 साल पहले, 13 समर्पित) कार्यकर्ताओं की शहादत को याद करने का है, लेकिन आँख में आँसू लाकर नहीं बल्कि सिर को ऊपर उठाकर क्योंकि ऐसी शहादतें ही किसी दल और देश का गौरवशाली इतिहास बनाती हैं।


    ये हर किसी पार्टी का सौभाग्य नहीं होता, जिसे ऐसे जान देने वाले वर्कर्स मिलते हैं। दरअसल कोई कितना भी बड़ा लीडर हो जाए या कभी कोई भी बड़ा पद न पाये लेकिन वो कार्यकर्ता हमेशा रहता है। कार्यकर्ता सबसे छोटा नहीं, सबसे बड़ा होता है। कार्यकर्ता ही किसी दल की बुनियाद होता है। उसकी शहादत अगर ये बताती है कि वो पार्टी के प्रति कितना वफ़ादार था, तो पार्टी द्वारा उसको याद करना बताता है कि पार्टी के दिल में उसके लिए कितनी ऊँची जगह है।
    जिस दल का सबसे बड़ा लीडर, उस दल का सबसे बड़ा वर्कर होता है, उसका वर्तमान मज़बूत होता है और भविष्य और भी ज़्यादा मज़बूत होता है। पिछले चुनाव में जब हमने आदरणीय ममता दीदी के लिए कहा थाः-‘‘एक अकेली लड़ जाएगी, जीतेगी और बढ़ जाएगी।‘‘
उस समय भी हमारा मतलब ये नहीं था कि दीदी अकेले लड़ रही हैं तब भी हमारा मतलब यही था कि दीदी अपने कार्यकर्ताओं के साथ, जान हथेली पर लेकर ‘एक’ होकर लड़ रही हैं।
    वर्कर किसी व्यक्ति का नाम नहीं होता है, बल्कि एक विचारधारा में विश्वास करके चलने का नाम होता है, हालातों को बदलने के लिए मरने-मिटने तक के संघर्ष का नाम होता है।


    आज की चुनौती बहुत बड़ी है। साम्प्रदायिक ताक़तें अपना शड़यंत्र रच रही हैं। वो देश को अपनी विभाजनकारी राजनीति के नाम पर बाँटकर, हमेशा के लिए राज करना चाहती हैं लेकिन ऐसा करने में वो कुछ समय के लिए कामयाब हो भी जाएं पर आख़रिकार वो हारेंगी क्योंकि गलत मंसूबे कभी अपनी मंज़िल नहीं पाते हैं।
    जो इंसान और इंसाफ़ के साथ खड़े होते हैं, जीत आखि़र उन्हीं की होती है। नकारात्मक लोग अंदर से डरे होते हैं, वो साज़िशों और मुख़बिरी का काम तो कर सकते हैं लेकिन सामने की लड़ाई लड़कर जान देने की हिम्मत उनमें कभी नहीं होती है। ख़ुदगर्ज़ी और मुनाफ़ाख़ोरी ही इनका कारोबार होती है, जिसको बढ़ाने के लिए ये सियासत करना चाहते हैं। लोगों का भला करना न कभी इनका मक़सद रहा है, न कभी रहेगा, इसीलिए ये हर हाल में, किसी भी स्तर तक गिरकर सत्ता अपने हाथ में रखना चाहते हैं। ऐसे लोग दूसरों की तो जान लेते हैं, लेकिन ख़ुद कभी जान नहीं देते हैं।
    ये लोग शहीद भी उधार लेते हैं, दूसरों के महापुरुषों को अपना बताने तक का षड्यंत्र करते हैं, क्योंकि नकारात्मक लोगों के पास अपने महापुरुष नहीं होते हैं। न इनके पास गुरुदेव होते हैं, न नेता जी। जो लोग इंसानियत को बाँटते हैं, उनके बीच कोई महापुरुष हो भी कैसे सकता है। महापुरुष होने की पहली शर्त यही है कि उसके दिल में इंसानियत धड़कती हो और जो सच का साथ देने के लिए कोई भी क़ीमत चुकाने को तैयार रहता है। ऐसी हिम्मत और हौसला नकारात्मक राजनीति करनेवालों में न कभी रहा है और न कभी रहेगा। जब-जब जनता जागरूक होती है, ऐसे लोगों में खलबली मच जाती है।
    इनके झूठे प्रचार और जुमलों की कलई खुलने लगती है, और ये हताश होकर आपस में ही लड़ने लगते है। ये नकारात्मक ताक़तें आखि़र में अपने अंदर की कलह से ही ख़त्म हो जाती हैं। आज देश जाग उठा है और ऐसी ताक़तों के पैर उखड़ने शुरू हो गये हैं, अब POSITIVE POLITICS का वक़्त आ गया है, देश को बचाने के लिए, संविधान को बचाने के  लिए, भाईचारा बचाने के लिए, हम सब को एक होना है, एकजुट रहना है।
    इसीलिए आज यहाँ आए हर समर्पित कार्यकर्ता से मैं आखि़र में बस इतना ही कहना चाहूँगाः ‘‘हिम्मत को बनाना हथियार और उसूलों की बुनियाद रखना, अपने हौसलों को हौसला देने के लिए अपने शहीदों को हमेशा याद रखना।‘‘

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