- जीडीए उपाध्यक्ष ने फिर दोहराया भूखंड स्थानांतरण का आश्वासन
- शमशान के निकट के आवंटियों को दो माह में बदलाव का फिर मिला संकेत
अथाह संवाददाता
गाजियाबाद। मधुबन बापूधाम योजना के सैंकड़ों आवंटी ऐसे हैं जिन्हें बनवास भोगते हुए 14 साल व्यतीत हो गए हैं। बनवास भोगने वाले यह वह आवंटी हैं जिनके भूखंड शमशान या कब्रिस्तान के आसपास स्थित है। पिछले तीन साल से आवंटी भूखंड स्थानांतरण के आश्वासन की घुट्टी पीते चले आ रहे हैं। कार्यभार ग्रहण करने के साथ ही उपाध्यक्ष अतुल वत्स ने भी इन्हें आश्वासन दिया था कि दीपावली तक इनके भूखंड स्थांतरित कर दिए जाएंगे। लेकिन निर्धारित अवधि बीतने के बावजूद ई पॉकेट के इन भूखंड स्थानांतरण का काम अंजाम तक नहीं पहुंचा। दैनिक अथाह द्वारा मधुबन बापूधाम के आवंटियों की परेशानी पर श्रृंखला की कड़ी के मध्य उपाध्यक्ष अतुल वत्स ने मधुबन बापूधाम योजना के आवंटियों की परेशानियों को दूर करने का आश्वासन एक बार फिर सार्वजनिक रूप से दिया है।
गौरतलब है कि वर्ष 2011 में जीडीए ने मधुबन बापूधाम योजना के विभिन्न पॉकेट में करीब 1865 भूखंडों की योजना निकाली थी। जिसमें लगभग 250 आवंटियों को कब्रिस्तान और शमशान के पास भूखंड आवंटित कर दिए गए थे। अधिकांश आवंटियों को कीमत अदा कर भूखंड की रजिस्ट्री के बाद इस बात का पता चला कि उनके भूखंड कब्रिस्तान और शमशान भूमि के निकट हैं। तभी से आवंटी इन भूखंडों के अन्यत्र स्थानांतरण की मांग करते चले आ रहे हैं। मधुबन बापूधाम रेजिडेंशियल सोसायटी के सचिव लीलाधर मिश्रा का कहना है कि विभाग बीते एक दशक में भी नया साइट प्लान तैयार नहीं कर पाया है। लगभग 3 साल पहले तत्कालीन उपाध्यक्ष ने स्थानांतरण का आश्वासन दिया था। उनका कहना है कि जीडीए अधिकारी पिछले तीन साल से स्थानांतरण का आश्वासन देते चले आ रहे हैं। उनका कहना है कि अगस्त 2024 में उपाध्यक्ष ने मीडिया के समक्ष घोषणा की थी कि भूखंड स्थानांतरण का काम दीपावली तक पूरा कर लिया जाएगा। लेकिन दीपावली के ढाई महीने बाद भी आश्वासन ही मिला रहा है। मिश्रा का कहना है कि उपाध्यक्ष द्वारा मीडिया में आए दिन मधुबन बापूधाम योजना के आवंटियों की समस्याओं के निदान के बयान दिए जाते हैं। लेकिन आश्वासन और योजनाएं कागज से आगे बढ़ती ही नहीं है।
मिश्रा का कहना है कि उपाध्यक्ष द्वारा हाल ही में पीड़ित आवंटियों को आश्वासन दिया है कि स्थानांतरण के लिए ले आउट तैयार कर लिया गया है। लेकिन यह ले आउट कहां किया गया है इस बात का खुलासा प्राधिकरण में करने को कोई तैयार नहीं है। श्री मिश्रा का कहना है कि सुनने में आया है कि ले आउट तैयार कर मंजूरी के लिए बोर्ड में ले जाया जाएगा। उनका कहना है कि शमशान व कब्रिस्तान के आसपास के आवंटियों को इलाके में भूखंड लेकर दोहरा दंड झेलना पड़ रहा है। इनमें से अधिकांश आवंटी ऐसे हैं जिन्होंने बैंक से ऋण लेकर जीडीए को भूखंड की पूरी कीमत अदा कर दी। उन पर पहला दंड बैंक का भारी भरकर ब्याज है। इनमें से अधिकांश पर दूसरा दंड प्रतिमाह उस भवन का किराया है जहां वह रहते हैं।