महर्षि वेदव्यास जी का जयंती है इस दिन
इस वर्ष गुरु पूर्णिमा 21 जुलाई को मनाई जाएगी। यद्यपि पूर्णिमा का व्रत 20 जुलाई को है। क्योंकि 20 जुलाई को शाम 17:59 बजे से पूर्णिमा आएगी जो सूर्य अस्त व प्रदोष काल के समय रहेगी और अगले दिन 15:40 बजे पूर्णिमा समाप्त हो जाएगी इसलिए शाम को प्रदोष काल में पूर्णिमा का अभाव रहेगा ।इसलिए पूर्णिमा का व्रत 20 जुलाई को ही रखा जाएगा। पूर्णिमा में भगवान विष्णु का पूजन, सत्यनारायण पूजा की जाती है। विधि विधान से सत्यनारायण व्रत कथा, विष्णु सहस्त्रनाम आदि का पाठ किया जाता है।
21 जुलाई को गुरु पूर्णिमा का पर्व बड़े उत्साह से मनाया जाएगा। साधक गण जो गुरु दीक्षा लिए हुए हैं। अपने परम गुरु को प्रणाम करते हैं ,उनका श्रद्धापूर्वक पूजन भी करते हैं। अपने गुरु के प्रति त्याग समर्पण का भाव होना चाहिए। इस भाव से जो गुरु का पूजन करता है उसको बहुत पुण्य मिलता है। लेकिन शर्त यह कि गुरु सदगुण युक्त, श्रेष्ठ और लोभ रहित होना चाहिए।
वर्तमान में बहुत से गुरु अपने को ब्रह्म से भी बढ़कर बताते हैं । ऐसे अहंकारी धनलोलुप गुरुओं का त्याग करना चाहिए।
गुरु पूर्णिमा को महर्षि वेदव्यास की जयंती भी मनाई जाती है । महाभारत काल से पहले महर्षि वेदव्यास जी का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को गंगा नदी के एक द्वीप पर हुआ था। इसलिए उनका बचपन का नाम कृष्ण द्वैपायन था। बाद में माता की आज्ञा से तपस्या करने वन चले गए और कठोर तपस्या करके ऋषि वेदव्यास कहलाए ।क्योंकि इन्होंने वेदों को मानव उपयोगी बनाने के लिए चार भागों में विभाजित किया।
इन्होंने ही महाभारत का ग्रंथ लिखा था। महर्षि वेदव्यास को ही गुरु का सम्मान प्राप्त है ।
जो गुरु अपने आश्रम में आसन पर बैठते हैं ।उस आसन को व्यास गद्दी कहा जाता है।
इस दिन 21 जुलाई को प्रातः 9:00 बजे से 3:00 बजे तक गुरु पूजन के कई शुभ मुहूर्त हैं।साधक अपने गुरु के प्रति समर्पण भाव लेकर जाए ,चरण स्पर्श कर नमन करें और उनको विधि विधान से उनका पूजन करें और उपहार अथवा दक्षिणा प्रदान करें। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में तो पवित्र भगवा ध्वज को ही गुरु माना गया है। यह बहुत अच्छी परंपरा है ।गुरु पूजन में कुछ विशिष्ट मंत्रों का उच्चारण करें तथा गुरु समक्ष नतमस्तक होकर विनम्रता का भाव दिखाएं। फल, फूल, मिष्ठान दक्षिणा आदि भेंट करें।
,गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर: ।गुरु: साक्षात् परमब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः
अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनेन शलाकया। चक्षून्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः।।
सन्त कबीर दास जी ने तो गुरु को भगवान से भी बड़ा बताया है ।उन्होंने कहा है –
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय। बलिहारी गुरु आपने ,गोविंद दियो बताय।।
लेकिन गुरु परम ज्ञानी,सत्यनिष्ठ परोपकारी, शिष्यों का कल्याण करने वाला और निर्लोभी होना चाहिए।
ऐसे गुरु का पूजन करने से ही शिष्यों का और भक्तों का जीवन कल्याणमय हो जाता है ।महर्षि दयानंद, स्वामी विवेकानंद आदि सन्त अपने परम गुरु के सान्निध्य से ही देश का नाम विश्व में प्रकाशित कर पाए। अच्छे गुरु को पाने के लिए अच्छा शिष्य बनना भी आवश्यक होता है।
इस भाव से गुरु का पूजन करेंगे तो गुरु पर्व सार्थक होगा।
पंडित शिवकुमार शर्मा, ज्योतिषाचार्य एवं वास्तु कंसलटेंट ,गाजियाबाद