Dainik Athah

2019 में भी 7 और 2024 में भी 7 सीट ‘न तुम जीते- न मैं हारा’

रालोद से गठबंधन का भाजपा को नहीं मिल सका लाभ

गठबंधन से रालोद को दो सीटों का हुआ लाभ

रालोद वालों के वोट मिले होते तो कैराना- मुजफ्फरनगर नहीं जाती भाजपा के हाथ से

अथाह संवाददाता
गाजियाबाद।
भारतीय जनता पार्टी और राष्टÑीय लोकदल के गठबंधन के बाद यह माना जा रहा था कि गठबंधन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में क्लीन स्वीप करेगा, लेकिन गठबंधन का लाभ रालोद ने उठा लिया और भाजपा की स्थिति वहीं 2019 वाली रही। 2019 में भाजपा ने पश्चिम की 14 में से सात सीटों पर कमल खिलाया था और इस बार भी सात सीटों से ही उसे संतोष करना पड़ा। सात सीटें इंडिया गठबंधन ने हथिया ली। इसीलिए कहा जा रहा है कि ‘न तुम जीते- न मैं हारा’।
भाजपा ने 2019 के चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मेरठ, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, बुलंदशहर, बागपत, कैराना और मुजफ्फरनगर सीटों पर जीत हासिल की थी। रामपुर सीट भाजपा ने उप चुनाव में सपा को हराकर जीत ली थी और पहली बार कमल खिलाया था। जबकि सहारनपुर, अमरोहा, संभल, मुरादाबाद, नगीना, बिजनौर व रामपुर में हार का सामना करना पड़ा था। इस बार चुनाव से पूर्व भाजपा और रालोद में गठबंधन हुआ था। इस गठबंधन के कारण भाजपा जिस बागपत सीट को लगातार दो बार से जीत रही थी उसे भी रालोद को सौंप दिया। इसके साथ ही बिजनौर सीट रालोद के खाते में गई। भाजपा के सहयोग से रालोद ने दोनों ही सीटें जीत ली और नल चलाकर लोकसभा का सूखा दूर कर लिया।
रालोद से गठबंधन के बावजूद भाजपा केवल पांच सीटें ही इस बार भी जीतने में सफल रही। इनमें मेरठ, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, बुलंदशहर, अमरोहा है। हां गठबंधन ने अवश्य सात सीटें जीत ली। इसमें दो सीटें रालोद के खाते में दो सीटें आई। इसका सीधा अर्थ यह हुआ कि रालोद को गठबंधन के कारण अवश्य दो सीटों का लाभ हुआ, जबकि उसका लोकसभा में कोई सदस्य नहीं था। रालोद ने भाजपा के सहयोग से ही दोनों सीटें जीती। गठबंधन के लिए भाजपा ने अपनी जीती हुई बागपत सीट तक को कुर्बान कर दिया। जबकि भाजपा को उम्मीद थी कि रालोद से गठबंधन के बाद उसकी मुजफ्फरनगर, कैराना, सहारनपुर और मुरादाबाद सीटें सुरक्षित हो जायेगी। लेकिन यहां पर कमल नहीं खिल पाया। जानकारी के अनुसार भाजपा ने तो गठबंधन धर्म निभाया, लेकिन रालोद गठबंधन धर्म निभाने में असफल साबित हुई। रालोद के वोट भाजपा को ट्रांसफर नहीं हो सके।
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने के अनुरोध के साथ कहा कि यह तो इतिहास है कि जब जब भाजपा और रालोद का गठबंधन हुआ है तब तब रालोद को ही इसका लाभ मिला है, भाजपा को इसका लाभ नहीं मिल सका। जानकारों का मानना है कि रालोद का साथ मिलने के बाद भाजपा को लगा कि जाट वोट थोक में भाजपा को मिलेगा, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। अब लोकसभा में पश्चिमी उत्तर प्रदेश से भाजपा का कोई जाट प्रतिनिधित्व नहीं रह गया है। भाजपा संजीव बालियान को जाट नेता के रूप में आगे कर रही थी उनके रथ का पहिया रालोद वालों के साथ ही राजपूतों ने दलदल में फंसा दिया जहां से उसका निकलना कठिन है।
एक पूर्व विधायक कहते हैं कि भाजपा को रालोद से गठबंधन को लेकर मंथन करना होगा कि उसे क्या लाभ हुआ और क्या नुकसान।
रही बात भाजपा के क्षेत्रीय अध्यक्ष सत्येंद्र सिसौदिया की तो उन्होंने पिछले चुनावों की तरह गठबंधन को सात सीटें दिलवा दी है, जिस कारण वे कह सकते हैं कि भाजपा को नुकसान तो नहीं ही हुआ।


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