जब सूर्यदेव कृतिका नक्षत्र से निकलकर 25 मई को रोहिणी नक्षत्र में आते हैं तो 9 दिन की अवधि नौतपा कहलाती है। नौतपा की अवधि में सूर्य का तपना कितना आवश्यक है यह शास्त्र में उल्लिखित है। अगर इन दिनों में प्रचंड गर्मी या लू ना चली हो तो फिर वर्ष भर विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है। शास्त्रों में लिखा है:दो मूसा, दो कातरा, दो तीडी ,दो ताय।दो की बादी जल हरै, दो विश्वर दो वाय।अर्थात नौतपा के 9 दिनों में पहले 2 दिन लूं ना चली और प्रचंड गर्मी ना हुई तो वर्ष भर ( मूसा)चूहों का आतंक रहेगा। जो फसलों के लिए और जनजीवन के लिए हानिकारक होता है। दूसरे दिन से अगले दो दिन लू ना चली और प्रचंड गर्मी ना हुई तो (कातरा) अर्थात फसल को नुकसान पहुंचाने वाले हानिकारक कीट नहीं मरेंगे जो आगे चलकर फसलों को नुकसान करेंगे। अगले दो दिन यानी तीसरे दिन से दो दिन में लू नहीं चली और प्रचंड गर्मी नहीं पड़ी तो टिड्डियों के द्वारा फसलों का नुक़सान होगा उनके अंडे नष्ट नहीं होंगे। अगले दो दिन तक यदि प्रचंड गर्मी ना पड़ी तो जन मानस में ज्वर, बुखार बढ़ाने वाले कीटाणु नहीं मरेंगे।पूरे वर्ष बुखार आदि बीमारियों से जन सामान्य को ग्रस्तितकरते रहेंगे। इसके बाद 2 दिन यदि भीषण गर्मी ना पड़ी तो ( विश्वर) अर्थात सांप, बिच्छू आदि जहरीले जंतु प्रकृति पर हावी हो जाएंगे। और उससे आगे दो दिन प्रचंड गर्मी ना पड़ी तो वर्ष भर आंधी ,तूफान चक्रवात भारी वर्षा से फसलों को नुकसान होगा। इसलिए हमारे ऋषि मुनियों जो अनुभव के आधार पर जो बात लिखी है वह सर्वथा अनुकूल है ।यदि इन दिनों में एक या दो दिन मौसम चक्र बिगड़ गया अर्थात बरसात हो गई , तूफान आ गया तो उसी प्रकार के नुकसान प्रकृति में देखने को मिलेंगे।