- गाजियाबाद लोकसभा क्षेत्र में कम वोटिंग और
- बिखराव को भाजपा के लिए माना जा रहा खतरे की घंटी
- वोटों में बिखराव का लाभ कांग्रेस प्रत्याशी डॉली शर्मा को मिलने की उम्मीद
अशोक ओझा
गाजियाबाद। गाजियाबाद का लोकसभा चुनाव संपन्न हो गया। चुनाव समाप्त होने के बाद अब चर्चा जीत- हार को लेकर शुरू हो गई है। यदि आंकड़ों को देखें तो भाजपा की जीत तो सभी मान रहे हैं, लेकिन इसके साथ ही यह भी तय माना जा रहा है कि जीत का अंतर 2019 के चुनाव के मुकाबले काफी कम होगा। हालांकि, भाजपा प्रत्याशी अतुल गर्ग के रणनीतिकार जीत का आंकड़ा पहले से बढ़कर बता रहे हैं जो किसी के गले नहीं उतर रहा।
गाजियाबाद लोकसभा चुनाव में तीन प्रत्याशियों भाजपा के अतुल गर्ग, कांग्रेस और इंडिया गठबंधन की डॉली शर्मा के साथ ही बसपा के नंदकिशोर पुंडिर के बीच माना जा रहा था। लेकिन मतदान का समय आते आते यह मुकाबला मुख्य रूप से अतुल गर्ग और डॉली शर्मा के बीच सिमट कर रह गया। यह चुनाव पिछले दो चुनावों 2014 और 2019 से भिन्न माना जा रहा है। इस बार का मत प्रतिशत देखें तो हर विधानसभा क्षेत्र में 2019 के चुनाव के मुकाबले वोट प्रतिशत तीन से लेकर सात फीसद तक कम हुआ है। इसमें भी भाजपा का गढ़ कहे जाने वाले साहिबाबाद क्षेत्र में करीब सात फीसद मतदान कम हुआ है। पिछले चुनाव में 55.81 फीसद मतदान हुआ था, जबकि इस बार 49.87 फीसद। इस प्रकार करीब छह फीसद मतदान कम हुआ है।
मतदान फीसद में गिरावट को भाजपा के नुकसान से जोड़कर देखा जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो कम मतदान जब भी हुआ है उसका नुकसान भाजपा को ही उठाना पड़ा है। एक बात मुख्य रूप से बताने लायक है वह यह कि अल्पसंख्यक मतदाताओं ने रणनीतिक मतदान किया। उनका अधिकांश वोट कांग्रेस प्रत्याशी के खाते में गया।
इसके साथ ही यदि जातीय मतदाताओं के रूझान को देखें तो ब्राह्मण, दलित, पिछड़ा, क्षत्रिय और त्यागी मतदाताओं का बड़ा हिस्सा भाजपा को मिलता आया है, जबकि इस बार त्यागी मतदाता चाहे कम संख्या में छिटके हो, लेकिन भाजपा से छिटके हैं। दलित, ब्राह्मण और क्षत्रिय मतदाताओं का बड़ा हिस्सा कांगे्रस प्रत्याशी के खाते में जाता नजर आ रहा है। इसका सीधा सीधा नुकसान एक प्रकार से भाजपा को हुआ है। इतना ही नहीं जाट मतदाताओं की बात करें तो रालोद से गठबंधन का लाभ भी भाजपा प्रत्याशी को होता नजर नहीं आया है। वहीं, कांग्रेस लाभ की तरफ जाती नजर आ रही है। रही बात बसपा प्रत्याशी की तो वह बचे खुचे क्षत्रिय और दलित मतदाताओं पर ही आश्रित रह गये। बसपा प्रत्याशी अपनी उपस्थिति भी ठीक से नहीं दिखा सके, इसका लाभ भी कांग्रेस को है।
यदि राजनीतिक विश्लेषकों की बात मानें तो अधिकांश का यहीं मत है कि जीत की संभावना भाजपा प्रत्याशी अतुल गर्ग की अधिक है, लेकिन जीत का अंतर पहले के मुकाबले काफी कम हो जायेगा। जीत का अंतर कम होना भी भाजपा के भविष्य के लिए खतरे की घंटी माना जा रहा है।