कविता ना वो दिन रहे हैं ना ये दिन रहेंगे, घनी चोट है ,सब मिलकर सहेंगे। अंधेरा घना, अब डराने लगा है, अनजान भय सा, सताने लगा है। अंधेरे की जिद, उजाला मिटेगा, जुगनू की जिद हैं ,वो भी लड़ेगा। जो जन्मा यहांपर ,निश्चित मरेगा, रहें प्राण जब तक, तब तक अडेगा। कठिन दौर है ,पर उफ ना कहेंगे, ना वो दिन रहे हैं ना ये दिन रहेंगे।। ये कैसी मायूसी इधर छा रही है, जिंदगी मौत के गीत गा रही है । सुखी लता पर ,नए पात होंगे, जो बिझुडें हुए हैं,कल साथ होंगे। जो मुरझाए चेहरे ,कल वो खिलेंगे, सूने जो पथ हैं ,सब मिल चलेंगे। यह गम केअंधेरें ,निश्चित ढलेंगे, ना वो दिन रहें है ना ये दिन रहेंगे।।
डॉ.प्रेम किशोर शर्मा ‘निडर’