Dainik Athah

शासन ने जीडीए के 30 अभियंताओं को माना अवैध निर्माण का दोषी

  • स्वर्ण जयंती पुरम आवासीय घोटाले का जिन्न एक बार फिर आया बोतल से बाहर
  • डेढ़ दशक बाद भी दोषी प्रशासनिक अधिकारियों पर नहीं गिरी गाज
    आलोक यात्री
    गाजियाबाद।
    स्वर्ण जयंती पुरम आवासीय योजना में भूखंडों के फर्जी आवंटन एवं इन भूखंडों पर अवैध निर्माण की शासन स्तर पर चल रही जांच में एक नया मोड़ आने के साथ ही 17 साल से चल रहे इस प्रकरण में घोटाले की बोतल से एक नया जिन्न बाहर आ गया है। हालिया जांच में फर्जी रूप से आवंटित भूखंडों पर अवैध निर्माण के संबंध में शासन ने गाजियाबाद विकास प्राधिकरण (जीडीए) के 30 इंजीनियर्स को दोषी माना है। आरोपी इंजीनियर्स के खिलाफ जांच के आदेश माननीय उच्च न्यायालय ने दिए थे। इनमें से कई को नोटिस जारी कर एक पखवाड़े के भीतर अपना पक्ष रखने को कहा गया है। गौरतलब है कि पहले चरण में 37 इंजीनियर दोषी पाए गए थे। लेकिन पुन: हुई जांच में सात इंजीनियरों को दोष मुक्त कर दिया गया। इस प्रकरण की तीसरी जांच मेरठ के कमिश्नर द्वारा की गई थी। जिसमें उन्होंने कई इंजीनियरों को फिर से दोषी करार दिया है। कमिश्नर ने सात जुलाई 2023 को जांच रिपोर्ट शासन को भेजी थी। जिसके बाद शासन ने 30 इंजीनियर्स को दोषी माना है।
    स्वर्ण जयंती पुरम आवासीय योजना में भूखंडों में फजीर्वाड़े का मामला राजेन्द्र त्यागी ने उठाते हुए उच्च न्यायालय में एक रिट दाखिल की गई थी। जिसके जरिए इस बात का खुलासा हुआ था कि जीडीए के अधिकारियों व कर्मचारियों ने योजना के 137 भूखंड फर्जी रूप से आवंटित किए थे। जिसके बाद इस प्रकरण की विस्तृत जांच का सिलसिला प्रारंभ हुआ। यह मामला अदालत में विचाराधीन था कि उसी दौरान फर्जी रूप से आवंटित कुछ भूखंडों पर निर्माण भी हो गया। अदालत ने इस तरह के निर्माण को विधि के विपरित पाते हुए योजना देख रहे इंजीनियर्स को भी दोषियों की कतार में खड़ा कर दिया था। प्रारंभिक जांच में पाया गया कि 26 भूखंडों पर नक्शा स्वीकृत कराए बिना ही भवन निर्माण हो गया। जबकि 40 भूखंडों पर नक्शे के विपरीत अवैध निर्माण किया गया। प्रारंभिक जांच में अधिशासी अभियंता स्तर के तीन, सहायक अभियंता स्तर के 14 व अवर अभियंता स्तर के 22 इंजीनियर शामिल पाए गए थे। यानी 39 इंजीनियर्स दोषी पाए थे। पुन: जांच में आरोपियों की संख्या 37 रह गई। शासन ने सात इंजीनियर्स को दोष मुक्त कर दिया। जिनमें अवर अभियन्ता निरंकार सिंह तोमर, सुधीर कुमार, अवध राज मोहम्मद बाकर, मनोज कुमार शर्मा, सुधीर कुमार, राजबल सिंह सिसोदिया व सहायक अभियंता धीरज सिंह शामिल हैं। इनमें से कुछ अधिशासी अभियंता पद पर प्रोन्नति भी पा चुके हैं। आरोपी बनाए गए अधिकांश इंजीनियर अवकाश ग्रहण कर चुके हैं।
    गौरतलब है कि स्वर्ण जयंती पुरम आवासीय योजना में भूखंड आवंटन का कार्य 1998 से 2003 के मध्य तक चला था। इसके पश्चात निरस्त हुए भूखंडों के पुनरार्वंटन का कार्य 2005 से 2007 के बीच तक चला। इस अवधि में ही घोटाला हुआ। वर्ष 2007 में राजेंद्र त्यागी ने इस प्रकरण को उजागर किया। जिसके बाद इस घोटाले की जीडीए में ही आंतरिक जांच चली। जो चार साल तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी। लिहाजा राजेन्द्र त्यागी को हाईकोर्ट की शरण लेनी पड़ी। हाईकोर्ट में याचिका दाखिल होने के 6 साल बाद यानी मामला उजागर होने के एक दशक बाद जीडीए ने वर्ष 2017 में सिहानी गेट थाने में एफआईआर दर्ज करवाई। वह भी अज्ञात लोगों के विरुद्ध। लेकिन इसी बीच हाईकोर्ट में दाखिल याचिका संख्या 59532/ 2011 में दिनांक 25 अक्टूबर 2017 के अनुपालन व शासन के निदेर्शों के क्रम में मंडलायुक्त मुरादाबाद की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय जांच समिति का गठन जरूर हो गया।
    ध्यान देने वाली बात यह है कि इस उच्च स्तरीय जांच कमेटी ने दिनांक 6 मार्च 2018 को जो जांच आख्या प्रस्तुत की उसमें तत्कालीन उपाध्यक्ष, तत्कालीन सचिव व तत्कालीन दो विशेषाधिकारी व अनु सचिव सहित कुल 12 अधिकारियों व कर्मचारियों को इस घोटाले का संपूर्ण रूप से दोषी ठहराया गया था। लेकिन एक भी आरोपी को सजा मिलना तो दूर उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई तक नहीं हुई।
    इस महाघोटाले का सबसे स्याह पक्ष यह है कि करोड़ों रुपए के इस घोटाले में जहां एक भी आरोपी आज तक दंडित नहीं हो सका वहीं अधिकांश आरोपी सेवानिवृत्त हो चुके हैं। उजागर होने के लगभग 17 साल बाद भी यह प्रकरण सांप निकलने पर लकीर पीटने का उदाहरण मात्र ही बना हुआ है। ऐसे में अब वह समय आ गया है जब जीडीए स्तर पर तैयार की गई कथित आरोपियों की उस सूची की पड़ताल भी कर ली जाए जिसने 60 अन्य अधिकारियों व कर्मचारियों के सिर पर तलवार लटका रखी थी। यह इस घोटाले का वह विभत्स रूप है जिसमें घोटाले की जांच के दौरान जीडीए अधिकारियों व अभियंताओं ने भ्रष्टाचार का जम कर तांडव किया। एक तरफ 137 भूखंडों के पुनरार्वंटन पर हाईकोर्ट से लेकर सूबे की सरकार सख्त रवैया अपनाए हुए थी, दूसरी तरफ जीडीए के गैरजिम्मेदार अधिकारी इन भूखंडों के नक्शे स्वीकृत करने, भूखंड पर निर्माण करवाने, संपूर्ति व नामांकन प्रमाणपत्र जारी करने में ही दिलचस्पी ले रहे थे। आंतरिक जांच में 60 अधिकारी और कर्मचारी अलग से चिन्हित कर दोषियों की श्रेणी में शामिल किए गए थे। इनमें आईएस स्तर के दो अधिकारियों को कथित रूप से आरोपी बताया गया था। एक तत्कालीन उपाध्यक्ष का नाम भी सूची में सबसे ऊपर था। इसके अलावा सूची में पीसीएस स्तर के 8 अधिकारी शामिल किए गए थे। जिनमें चार तत्कालीन सचिव और इतने ही तत्कालीन विशेष कार्याधिकारी रहे हैं। संयुक्त सचिव स्तर के जो 5 अधिकारी आरोपित थे। उनमें उत्तर प्रदेश पालिका केंद्रीय सेवा स्तर के 3, श्रम विभाग और भूमि सुधार निगम से प्रतिनियुक्ति पर आए एक-एक अधिकारी शामिल थे। अवर सचिव व अनुसचिव स्तर के भी एक-एक तत्कालीन अधिकारी का नाम भी कथित रूप से आरोपियों में शामिल था। ऐसे में सवाल यह उठता है कि टुकड़ों-टुकड़ों में चल रही जांच का कोई ठोस नतीजा सामने कब आएगा और दोषियों को सजा कब मिलेगी?

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