- सुप्रीम कोर्ट के एजीआर वर्डिक्ट का असर
अथाह बूयरो , नई दिल्ली। सरकार और टेलीकॉम कंपनियों (Telecom Companies) के बीच का फी-शेयरिंग मॉडल है एजीआर यानी एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू। यह । 1999 में इसे फिक्स लाइसेंस फी मॉडल से रेवेन्यू शेयरिंग फी मॉडल बनाया था। टेलीकॉम कंपनियों को अपनी कुल कमाई का एक हिस्सा सरकार के साथ शेयर करना होता है।
खामियाजा भुगतना होगा ग्राहकों को
सुप्रीम कोर्ट ने एजीआर के मुद्दे पर टेलीकॉम कंपनियों (Telecom Companies) को बकाया राशि चुकाने के लिए 10 साल दिए हैं। सरकार तो 20 साल भी देने को तैयार थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का रुख देखते हुए कंपनियों ने 15 साल मांगे थे। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने न सरकार की सुनी और न ही कंपनियों की और 10 साल में बकाया राशि का भुगतान करने का आदेश दे दिया। भले ही एजीआर एक जटिल मुद्दा है, आगे चलकर इसका खामिजाया ग्राहकों को ही भुगतना पड़ेगा।
अक्टूबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने तय किया कि टेलीकॉम ऑपरेटर सिर्फ कोर सर्विसेस से मिलने वाली रेवेन्यू का हिस्सा ही नहीं पूरा का पूरा रेवेन्यू देगी।
किस कंपनी पर कितना बकाया
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार टेलीकॉम कंपनियों पर 1.69 लाख करोड़ रुपए की वसूली निकली थी। इसमें भी 26 हजार करोड़ रुपए दूरसंचार विभाग को मिल गए हैं। मार्च 2020 में एयरटेल पर करीब 26 हजार करोड़ रुपए, वोडाफोन-आइडिया पर 55 हजार करोड़ और टाटा टेलीसर्विसेस पर करीब 13 हजार करोड़ रुपए बकाया है।
हर साल चुकाने होंगे 12 हजार करोड़ रुपए
क्रेडिट रेटिंग एजेंसी इकरा का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करने पर टेलीकॉम कंपनियों को 31 मार्च 2021 तक नौ हजार करोड़ रुपए का भुगतान करना होगा। उसके बाद फरवरी 2031 तक हर साल 12 हजार करोड़ रुपए चुकाने होंगे।
31 मार्च 2019 को इन कंपनियों पर 5 लाख करोड़ रुपए का कर्ज था, जो मार्च 2020 तक घटकर 4.4 लाख करोड़ रुपए रह गया है। लेकिन यह कर्ज अब और कम नहीं होने वाला, क्योंकि एजीआर भुगतान करने में कंपनियों को अतिरिक्त फंड जुटाना होगा।