शाम 8:30 बजे के बाद होगा भगवान शिव पर जलाभिषेक भगवान शिव का प्रमुख पर्व
शिवरात्रियद्यपि प्रत्येक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है ।किंतु फाल्गुन और श्रावण के महीने में शिवरात्रि का विशेष महत्व है। जहां फाल्गुन मास में महाशिवरात्रि का आयोजन किया जाता है, वहीं सावन के महीने में शिवरात्रि भी बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है इस वर्ष श्रावण मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी 15 जुलाई को है शाम 8:32 बजे चतुर्दशी तिथि आ रही है ।इसलिए शिवरात्रि का व्रत 15 जुलाई को ही रखा जाएगा क्योंकि उसका समापन शिवरात्रि आरंभ होने पर किया जाएगा तो 8:30 बजे के बाद होगा।शिवरात्रि के दिन प्रात काल से ही बर्दवान शिवालयों में शिवलिंग पर गंगा जल जल और दूध से हमसे करेंगे विशेष मनोकामना की दृष्टि से अलग-अलग पदार्थों से भी भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है।चतुर्दशी का मुख्य पर्व 15 जुलाई को रात्रि 8:30 बजे हुए अपने क्षेत्रों के शिव मंदिर में शिवलिंग पर जलाभिषेक करेंगे।ऐसा कहा जाता है कि जब समुद्र मंथन हुआ था उस समय सबसे प्रथम हलाहल विष निकला था और इस हलाहल विष से सारा संसार जीव जंतु व्याकुल होने लगे।तब कल्याणकारी भगवान शिव ने संसार को उस विष अग्नि से बचाने के लिए हलाहल विष को धारण किया। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने उसको गले से नीचे नहीं जाने दिया और गले में ही सोख लिया इसलिए उनका कण्ठ नीला हो गया । इसीलिए भगवान शिव को नीलकंठ भी कहते हैं ।भगवान के इस बीच के ज्वाला को शांत करने के लिए भक्त गण गंगा जल दूध, दही, शहद आदि से भगवान का अभिषेक कर विषकी पीड़ा से मुक्ति दिलाते हैं। कुछ लोग भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए ऐसा मानते हैं कि भांग धतूरा आक के पुष्प आदि विषैली वस्तुओं को चढ़ाने भगवान प्रसन्न होते हैं लेकिन प्राचीन ग्रंथों और रुद्राष्टाध्यायी में कहीं यह वर्णन नही है। भगवान शिव को भांग धतूरा आदि विषैले पदार्थ चढ़ाना लोकाचार हो सकता है इसी कारण यह एक प्रकार की परम्परा प्रारंभ हो गई जो हानिकारक है ।मेरा तो यही मानना है कि आप भगवान को भांग धतूरा आक पुष्प न चढ़ाएं बल्कि परंपरागत विधियों से दूध , दही, शहद ,पंचामृत आदि पवित्र वस्तुओं से उन्हें स्नान कराएं। ताकि भगवान शिव हमारी कामना को पूरा करें और आशीर्वाद प्रदान करें।
आचार्य शिव कुमार शर्मा आध्यात्मिक गुरु एवं ज्योतिषाचार्य।