- निकाय चुनाव में कैसे हिल गई विश्व के सबसे मजबूत संगठन की जड़ें
- ऊपर से लेकर नीचे तक जड़ों में मट्ठा डालने वालों की नहीं थी कोई कमी
- बूथ- शक्ति केंद्र की व्यवस्था भी हो गई ध्वस्त
अशोक ओझा
लखनऊ। निकाय चुनाव संपन्न हो गये। इसके साथ ही शुक्रवार से लेकर शनिवार अर्थात कल तक पूरे प्रदेश की नगर निकायों में शपथ ग्रहण का दौर चलेगा। यह शपथ ग्रहण के बाद सभी निकायों में जनता की सरकार काम करना शुरू कर देगी और ब्यूरोक्रेट्स के हाथों से निकल कर चुने हुए जनता के प्रतिनिधियों के हाथों में आ जायेगी। लेकिन इन चुनावों ने केंद्र एवं प्रदेश में सत्तारूढ भारतीय जनता पार्टी की सांगठनिक क्षमता पर भी सवाल खड़े कर दिये हैं। यह सवाल ऐसे ही खडेÞ नहीं होते। यदि चुनाव की कमान प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी के हाथों में न होती तो शायद परिणाम कुछ और ही होते।
प्रदेश में निकाय चुनाव में मिली सफलता से पूरा भाजपा संगठन खुशी मना रहा है। खुशी मनाये भी क्यों नहीं जब भाजपा को प्रदेश में अब तक की सबसे बड़ी जीत मिली है। लेकिन टिकट वितरण से पार्टी में शुरू हुई रार लगता है कि लंबे समय तक देखने को मिलेगी। खुलकर तो कुछ लोग ही एक- दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं, लेकिन हकीकत यह है कि जन प्रतिनिधियों जिनमें सांसदों से लेकर सबसे नीचे तक के जन प्रतिनिधियों के रंग भी कार्यकर्ताओं को देखने को मिले। ऐसे बिरले ही जन प्रतिनिधि रहे जिन्होंने टिकट वितरण से खुद को अलग रखा। टिकट वितरण से जन प्रतिनिधियों खासकर सांसदों एवं विधायकों में शुरू हुई यह रार मतदान तक पूरे प्रदेश में देखने को मिली। इसका परिणाम यह हुआ कि जिन निकाय अध्यक्षों के पदों पर भाजपा मजबूत थी वहां पर भी उसे हार का मुंह देखना पड़ा।
इसके साथ ही अब बात संगठन की करें तो प्रदेश के अधिकांश जिलों में संगठन इन चुनावों में बिखरा हुआ नजर आया। कहीं पर जिले के पदाधिकारी खुद अथवा अपनी पत्नी को चुनाव लड़ा रहे थे, तो कहीं पर अपने किसी करीबी के लिए पूरी ताकत झौंकी हुई थी। यह स्थिति मंडल स्तर तक रही। इतना ही नहीं भाजपा के सहयोगी संगठनों के नेता भी चुनाव में खुद का हित देखते रहे। अनेक स्थानों पर तो ऐसा भी देखने को मिला कि मंडल अध्यक्ष तक बागियों को अथवा निर्दलीय प्रत्याशियों को चुनाव लड़ाते नजर आये। इससे समझा जा सकता है कि मंडल अध्यक्ष ही जब अपने हित पूरे करने में लगे हों तो बूथ और शक्ति केंद्रों की व्यवस्था क्या रही होगी। यह सभी व्यवस्थाएं भी पूरी तरह से ध्वस्त नजर आई। इस दौरान आरोपों से भी कोई बिरला ही बच सका।
स्थिति यह है कि निकाय चुनाव में जिस प्रकार भाजपा संगठन की व्यवस्थाएं छिन्न भिन्न हुई उसे 2024 के चुनाव के लिए फिर से पटरी पर लाना आसान नहीं होगा। भाजपा की सबसे मजबूती बूथ एवं शक्ति केंद्र को ही माना जाता है।
यह तो रहीं संगठन की बात, अब निकाय चुनाव का दूसरा पहलू यह है कि पूरे निकाय चुनाव में प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश के हर जिले का दौरा किया। इस दौरान सभाओं में जिले के सभी महापौर, चेयरमैन प्रत्याशियों को बुलाया गया था। उन सभी की जीत के लिए भी मुख्यमंत्री अपील करते थे। एक प्रकार से कहा जाये तो योगी आदित्यनाथ ने चुनाव को खुद के लिए भी चुनौती माना था। उन्होंने खुद जहां पूरी ताकत लगाई, वहीं दूसरी तरफ जिलों के प्रभारी मंत्रियों को ही पहली बार चुनाव की जिम्मेदारी सौंपी थी। ये मंत्री संगठन और सरकार में तालमेल बैठाते थे। इसका भी चुनाव परिणामों पर असर रहा। मुख्यमंत्री की मेहनत और मंत्रियों को जिलों का प्रभार मिलने का भी सुखद परिणाम रहा और भाजपा ने सबसे बड़ी जीत दर्ज की। लेकिन बात फिर वहीं है। वह बात है संगठन को फिर से कसने के साथ ही चुनावी मोड में लाने की। अन्यथा स्थिति क्या होगी यह समझा जा सकता है।
इस संबंध में भाजपा के एक वरिष्ठ नेता नाम न छापने के अनुरोध के साथ कहते हैं कि छोटे चुनावों में संगठन का यहीं हश्र होता है। खासकर वह चुनाव जो वार्ड स्तर के हो। लेकिन कुछ दिनों बाद स्थिति में सुधार हो जायेगा।