शाम के समय यदि किसी भी समाचार चैनल को देखा जाये तो वहां डिबेट के दौरान विभिन्न दलों के प्रवक्ता एवं समर्थक आपस में लड़ते नजर आते हैं। इस दौरान मर्यादा को पूरी तरह से ताक पर रख दिया जाता है। यदि देखा जाये तो इस दौरान टीवी चैनलों के एंकर ही उन लोगों को अधिक मौका देते हैं जो इस दौरान आक्रामक होते हैं।
यह भी मान लिया जाये कि उन्हें आक्रामक किया जाता है। इस दौरान एक दूसरे के ऊपर व्यक्तिगत आरोप भी लगाये जाते हैं। आप समझ गये होंगे मैं बात कर रहा हूं कांग्रेस के प्रवक्ता राजीव त्यागी के असामयिक निधन की। बुधवार को एक चैनल की डिबेट में राजीव त्यागी अपने घर से ही डिबेट में भाग ले रहे थे।
इसी दौरान डिबेट के बीच में ही उन्हें कार्डियक अटैक पड़ा और उनका निधन हो गया। इस मामले को लेकर सभी के अपने अपने विचार है। कुछ चैनल तो ऐसे भी है जो एक प्रवक्ता को उकसाते हैं। जब दूसरा प्रवक्ता उसी की भाषा में जवाब देते हैं तो उनको आम बोलचाल की भाषा में हड़काकर चुप करवा दिया जाता है।
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यहां तक कह दिया जाता है कि चैनल मेरा है तुम चुप रहो। लेकिन कल ऐसा कुछ नहीं हुआ था। डिबेट के बीच में ही उन्हें अटैक पड़ा। सरकार को अब यह तय करना चाहिये कि टीवी डिबेट के दौरान मर्यादा का ख्याल रखा जाना चाहिये। इसके साथ ही डिबेट के लिए कुछ दिशा निर्देश सरकार जारी करें जिससे टीवी चैनलों की टीआरपी की होड़ से डिबेट को बाहर किया जाये। डिबेट के दौरान जिस प्रकार की भाषा का प्रयोग होता है उसे कोई भी सभ्य भारतीय पसंद नहीं करता
। रालोद के प्रवक्ता इन्द्रजीत टीटू ने तो इसको लेकर केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पत्र भी लिखा है। एक दल के राष्टÑीय प्रवक्ता एवं भद्र पुरुष को तो एक बार में देख रहा था डिबेट के दौरान जब उनसे उम्र एवं अनुभव में छोटे प्रवक्ता ने अभद्र भाषा का प्रयोग किया तो वे स्वयं डिबेट से बाहर चले गये। वे कहते हैं कि वे प्रयास करते हैं कि डिबेट में भाग न लें। वहीं अनेक लोग डिबेट केवल इसलिए नहीं देखते कि उसमें लड़ाई झगड़े, मर्यादा को ताक पर रखने एवं कीचड़ उछालने के सिवाय कुछ नहीं है। केंद्र सरकार को इस पर अब गंभीरता से विचार करना चाहिये कि डिबेट का स्तर क्या हो।