जांच आख्या में हुआ था खुलासा : 139 भूखंडों के आवंटन का निर्णय त्रुटिपूर्ण था
प्रयागराज में डेरा डाले जीडीए अधिकारियों की कोशिश ना लगे साख पर बट्टा
आलोक यात्री
गाजियाबाद। स्वर्ण जयंती पुरम भू आवंटन महाघोटाले की हाईकोर्ट में होने वाली सुनवाई के मद्देनजर जीडीए के उन कर्मचारी और अधिकारियों की चिंता बढ़ गई है जिनके नाम कथित रूप से घोटाले में शामिल बताए जा रहे हैं। एक दशक से भी अधिक समय से हाई कोर्ट में चल रही सुनवाई में जीडीए का पक्ष रखने वाले अधिकारी न्यायालय की नाराजगी से कई बार रूबरू हो चुके हैं। इसके अलावा शासन स्तर पर भी कई बार नाराजगी जताई जा चुकी है। जीडीए की ओर से आज भी अपना पक्ष न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करना है। गौरतलब है कि जीडीए स्तर पर शासन को इस तरह की जांच आख्या पूर्व में भी कई बार उपलब्ध करवाई गई है। सूत्रों का कहना है कि पूर्व में हुई जांच आख्या को यदि आधार माना जाए तो दूध का दूध और पानी का पानी सामने आ जाएगा।
गौरतलब है कि राजेंद्र त्यागी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार के मध्य कोर्ट में विचाराधीन याचिका में जीडीए की आंतरिक जांच आख्या शासन के माध्यम से न्यायालय के समक्ष पूर्व में प्रेषित की जा चुकी है। न्यायालय के आदेश पर ऐसी ही एक जांच करीब पांच साल पूर्व हुई थी। जिसकी जांच आख्या तत्कालीन जिलाधिकारी/ उपाध्यक्ष स्तर से शासन को भेजी गई थी। उक्त जांच आख्या में इस बात की पुष्टि की गई थी कि 139 भूखंडों की बहाली या पुनरार्वंटन का निर्णय ही त्रुटिपूर्ण था। इस बिंदु की विस्तृत जांच की संस्तुति भी उक्त अधिकारी द्वारा की गई थी। इसके अलावा करीब चार दर्जन भूखंडों के आवंटन या पुनर्बहाली को जांच में संदिग्ध माना गया था। यह संभावना भी जताई गई थी कि भूखंड की बहाली या पुनरावंटन किसी अन्य के पक्ष में निष्पादित हुआ किया हुआ प्रतीत होता है। जिसे अलग से जांच का विषय बताया गया था।
जांच में करीब आधा दर्जन प्रकरण ऐसे पाए गए थे जिनकी पुनर्बहाली या पुनरावंटन से जीडीए को करीब 50 लाख रुपए के राजस्व की हानि उठानी पड़ी थी। इस जांच आख्या में तत्कालीन उपाध्यक्ष डीपी सिंह, तत्कालीन विशेष कार्याधिकारी हीरालाल, तत्कालीन सचिव आरसी मिश्रा, तत्कालीन विशेष कार्याधिकारी आरपी पांडेय, लिपिक जगदीश शर्मा, रामचंद्र बिंद, उदय सिंह व दीपक तलवार एवं तत्कालीन अनु सचिव का नाम स्पष्ट रूप से अंकित है। इस तरह की जांच आख्या शासन के माध्यम से न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत होती रही हैं और आज भी उन्हें नए संदर्भों के साथ पटल पर रखे जाने की संभावना है। देखना यह है कि गुरुवार को हाईकोर्ट में होने वाली सुनवाई का क्या परिणाम सामने आता है। गौरतलब है कि इस प्रकरण में न्यायालय शासन से कई बार असंतुष्टि जताते हुए यह भी पूछ चुका है कि इस प्रकरण को अग्रिम जांच हेतु क्यों न सीबीआई के सुपुर्द कर दिया जाए? जीडीए के अधिकारियों की चिंता यह है कि यह प्रकरण जांच के लिए यदि सीबीआई के सुपुर्द किया जाता है तो जीडीए की साख को बड़ा भट्टा लग सकता है।