स्थानांतरण सूची जारी होने के बाद जीडीए कर्मचारियों में मचा है घमासान
जारीकर्ता अधिकारी के सहायक पर लगाया बंदरबांट का आरोप
अथाह संवाददाता
गाजियाबाद। यह बात सर्वविदित है कि जीडीए में कुछ मठाधीश सुपरवाइजर्स व बाबुओं का वर्चस्व कायम है। अव्वल तो यहां शासन की किसी स्थानांतरण नीति का पालन नहीं होता। स्थानांतरण नीति का पालन हो भी जाए तो उसका पालन नहीं होता। मीडिया में भ्रष्ट बाबुओं के कारनामों और बरसों से सीट कब्जाने का मामला उजागर होने के बाद कुछ कर्मचारियों के कार्य क्षेत्र परिवर्तित किए तो गए। लेकिन उसमें भी बंदरबांट का खेल जमकर खेला गया।? प्राधिकरण में संपत्ति व प्रवर्तन विभाग में कुछ जोन की पहचान दुबई तो कुछ विभाग की पहचान काला पानी के तौर पर मानी जाती है। दस दिन पहले जारी हुई पर प्राधिकरण में फिलहाल घमासान मचा है।
कर्मचारी अब सूची जारीकर्ता अधिकारी के सहायक पर बंदरबांट का आरोप लगा रहे हैं। उनका कहना है कि सहायक की मेहरबानी से किसी को दुबई का साम्राज्य तो किसी को काला पानी भेज दिया गया है। गौरतलब है कि 13 मई को अपर मुख्य सचिव देवेश चतुवेर्दी द्वारा जारी निदेर्शों में 30 जून तक शासन की स्थानांतरण नीति का कठोरता से पालन करने के निर्देश दिए थे। लेकिन सूबे के अपर मुख्य सचिव के आदेश पर जीडीए में निर्धारित अवधि बीतने के तीन माह बाद भी संज्ञान तब लिया गया जब मठाधीशों के काम न करने और काम के बदले सुविधा शुल्क मांगने की खबरें मीडिया की सुर्खियां बनने लगीं। अंतत: 67 कर्मचारियों के कार्य क्षेत्र में बदलाव कर दिया गया। सूची जारी होते ही कर्मचारियों ने इस पर उंगली उठाना शुरू कर? दिया। उनका आरोप है कि सूची बनाने में पारदर्शिता नहीं बरती गई। न ही बरसों से खाली बैठे कर्मचारियों की उपयोगिता परखी गई।
कर्मचारियों का कहना है कि सूची बनाने में विधि अनुभाग की पूरे तौर पर अनदेखी की गई है। जहां पिछले 15 वर्षों से सुपरवाइजर लिपिकों का कार्य कर रहे हैं। इन सुपरवाइजर की विधि अनुभाग में तैनाती वाद पैरोकारी हेतु की गई थी। लेकिन इनसे काफी वर्षों से लिपिकीय कार्य लिया जा रहा है। समय-समय पर उच्चाधिकारियों द्वारा यह संदेह भी जताया जाता रहा है कि बरसों से एक ही पटल पर कार्य करते रहने के कारण इनमें से कुछ लोग प्राधिकरण के विरुद्ध वाद हितों के संबंध में नुकसानदेह रहे हैं। संदेह की वजह यह बताई गई थी कि वर्षों से यहीं तैनात होने के कारण प्राधिकरण के विरुद्ध केस करने वाले लोगों से इनकी दूरभि संधि किसी ना किसी प्रकार हो ही जाती है। सबसे अधिक आश्चर्य की बात तो यह है कि रिटायरमेंट के बाद भी कुछ सुपरवाइजर विधि अनुभाग में नियमित रूप से कार्य कर रहे हैं। सवाल यह उठता है कि अवकाश ग्रहण करने के बाद भी यह किसके निर्देश पर विधि अनुभाग में कार्य कर रहे हैं? दूसर इनके वेतन की क्या व्यवस्था है? महत्वपूर्ण फाइलों का निस्तारण इनके द्वारा ही क्यों किया जा रहा है?
यही नहीं अभियंत्रण और प्रवर्तन अनुभाग में तैनात सुपरवाइजर की फोज को भी स्थानांतरण सूची में स्थान नहीं दिया गया है। जबकि महानगर में अवैध निर्माण व जीडीए में भ्रष्टाचार की सबसे अहम कड़ी यही सुपरवाइजर ही हैं। जीडीए के सुपरवाइजर की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां का एक पूर्व सुपरवाइजर जोन 2 में अवैध कोलोनाइजर तथा अवैध निर्माणकतार्ओं के लाइजनर की भूमिका निभा रहा है। जीडीए प्रवर्तन विभाग में उसका अच्छा खासा रुतबा बताया जाता है। हाल ही में जारी स्थानांतरण सूची में अवर अभियंताओं को भी जगह नहीं मिली है। जबकि इनमें से अधिकांश तीन वर्षों से अधिक समय से एक ही पटल पर काबिज बताए जा रहे हैं।
जीडीए में उपाध्यक्ष, सचिव, वित्त नियंत्रक, मुख्य अभियंता, विशेषाधिकारी व संयुक्त सचिव जैसे पदों पर तैनात अधिकारी के साथ नियमानुसार शासन से स्वीकृत वैयक्तिक सहायक ही तैनात होना चाहिए। लेकिन वैयक्तिक सहायक की तैनाती में बरसों से खेल चल रहा है। वरिष्ठता कनिष्ठता का पालन तो एक तरफ इन पदों पर भी अपात्र कर्मचारियों की तैनाती की जा रही है। जीडीए में इस समय 4 वैयक्तिक सहायक ही बचे हैं। जिनकी तैनाती वरिष्ठता के क्रम में होनी चाहिए। सबसे वरिष्ठ वैयक्तिक सहायक मुख्य नगर नियोजक (सीएटीपी) के कार्यालय से संबद्ध हैं। जबकि विगत चार महीने से जीडीए में सीएटीपी का पद रिक्त चल रहा है। उक्त वैयक्तिक सहायक का कहना है कि महिला होने की वजह से उन्हें न्याय नहीं मिल रहा है। इस पद पर वह 28 फरवरी 2017 से तैनात हैं। वरिष्ठता में दूसरे क्रम की वैयक्तिक सहायक 13 सितंबर 2019 से अपर सचिव कार्यालय से, तीसरे क्रम के वैयक्तिक सहायक 28 फरवरी 2017 से उपाध्यक्ष व चौथे क्रम के वैयक्तिक सहायक 1 सितंबर 2019 से विशेषाधिकारी के साथ संबद्ध हैं। बताया गया है कि वित्त नियंत्रक के वैयक्तिक सहायक के तौर पर आउट सोर्स से सेवाएं ली जा रही हैं। जबकि सचिव व मुख्य अभियंता के वैयक्तिक सहायक के तौर पर प्राधिकरण के लिपिक ही लंबे समय से सेवाएं दे रहे हैं।
सूची पर अंगुली उठाते हुए कर्मचारी सवाल कर रहे हैं कि हममें से कइयों के साथ न्याय नहीं हुआ लेकिन वैयक्तिक सहायकों को तो वरिष्ठता के क्रम में वरिष्ठ अधिकारियों के साथ संबद्ध किया जाना चाहिए था। आखिर क्या वजह है कि प्राधिकरण में वैयक्तिक सहायकों को दर किनार कर लिपिक संवर्ग व आउट सोर्स से सेवाएं ली जा रही हैं। कंप्यूटर अनुभाग में भी एक दर्जन से अधिक प्रोग्रामर खाली बैठे हैं। जजिनका मासिक वेतन लाख रुपए के आसपास है। दूसरी ओर कंप्यूटर कार्य? के लिए भी जीडीए आउट सोर्स पर ही निर्भर है।
कर्मचारियों के तर्कों में तो दम है। उनके उठाए सवाल भी जायज हैं। देखने वाली बात यह है कि अधिकारी जायज सवालों के मद्देनजर इस स्थानांतरण सूची का पुनर्रिक्षण करने पर गौर फरमाएंगे क्या?