जीडीए अधिकारियों की अदूरदर्शिता का बड़ा नमूना आया सामन
पौने तीन करोड़ की लागत का पॉवर संयंत्र 4 साल से फांक रहा है धूल
आलोक यात्री
गाजियाबाद। जीडीए द्वारा सिटी फॉरेस्ट में करोड़ों रुपए की लागत से लगा सौर ऊर्जा संयंत्र बरसों से धूल फांक रहा है। 500 केवीए का यह संयंत्र वर्ष 2019 में करीब पौने तीन करोड़ रुपए की लागत से लगाया गया था। स्थापित होने के बाद से इसका कोई उपयोग नहीं हो पाया है। जीडीए के मुख्य अभियंता राकेश कुमार गुप्ता का कहना है कि प्लांट शुरू करने के लिए पॉवर कॉरपोरेशन के अधिकारियों से वार्ता की जाएगी।
गौरतलब है कि वर्ष 2019 में सिटी फॉरेस्ट की विद्युत आपूर्ति के लिए सौर ऊर्जा संयंत्र की स्थापना की गई थी। जीडीए की योजना थी कि इस संयंत्र के जरिए सिटी फॉरेस्ट की विद्युत आपूर्ति के अलावा शेष विद्युत पावर कारपोरेशन को बेच दी जाएगी। सूत्रों का कहना है कि संयंत्र की क्षमता कम होने की वजह से पॉवर कॉरपोरेशन ने शेष पावर लेने से इंकार कर दिया था। विशेषज्ञों का कहना है कि संयंत्र को चलाने और इससे उत्पादित विद्युत पॉवर कॉरपोरेशन को बेचने के लिए इसकी क्षमता दोगुनी (1000 केवीए) करनी पड़ेगी। जिस पर लगभग चार करोड़ रुपए अतिरिक्त खर्च होने का अनुमान है। सौर ऊर्जा प्लांट के शुरू न होने और देखरेख के अभाव में इसकी प्लेटें भी चोरी हो गई हैं। कुछ प्लेटें क्षतिग्रस्त भी हो गई हैं। इसके अतिरिक्त इसके संचालन के लिए लगाए गए ट्रांसफार्मर के भी कई पुर्जे चोरी हो गए हैं।
प्लांट में करोड़ों रुपए जाया होने से विभागीय कार्यप्रणाली भी सवालों के दायरे में है। जानकारों का कहना है कि इस तरह के सोलर प्लांट से उत्पादित ऊर्जा पॉवर कॉरपोरेशन पीपीए (पॉवर परचेज एग्रीमेंट) के तहत खरीद लेता है। लेकिन इस मामले में पॉलिसी जांचे बगैर ही जीडीए ने प्लांट स्थापित कर दिया। यही वजह रही कि पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड ने प्लांट की बिजली खरीदने से इंकार कर दिया। जिसके बाद से करोड़ों रुपए का यह प्लांट जीडीए को मुंह चिढ़ा रहा है।
जीडीए की योजना प्लांट की उत्पादित 90 फीसदी ऊर्जा पॉवर कॉरपोरेशन को बेचकर कमाई करने व 10 फीसदी ऊर्जा का सिटी फॉरेस्ट में बिजली आपूर्ति की थी। कॉरपोरेशन के पॉवर परचेज एग्रीमेंट में उत्पादित ऊर्जा खरीद के लिए सौर ऊर्जा प्लांट की न्यूनतम क्षमता 1000 केवीए होना जरूरी है। जबकि पॉलिसी की पड़ताल किए बगैर जीडीए ने महज 500 केवीए का प्लांट ही स्थापित कर दिया। प्लांट से उत्पादित ऊर्जा बेचने के लिए जीडीए को इतनी ही क्षमता का एक और प्लांट लगाना होगा। जानकारों का कहना है कि वर्तमान दर पर इसकी लागत करीब चार से साढ़े चार करोड़ रुपए आएगी।
गौर करने वाली बात यह है कि पॉवर पॉलिसी का अध्ययन न करने और जल्दबाजी में सौर ऊर्जा प्लांट स्थापित करने की वजह से जीडीए को करोड़ों की चपत लग गई है। इस प्रकरण में तत्कालीन अधिकारियों की लापरवाही भी एक बड़ी वजह है। समझा जा सकता है कि प्लांट स्थापित करने से पहले जीडीए अधिकारियों ने सौर ऊर्जा से उत्पादित विद्युत खरीद से जुड़ी नियमावली का पूरे तौर पर अध्ययन नहीं किया था। जिसकी वजह से कम क्षमता का प्लांट स्थापित कर दिया गया। जीडीए को प्लांट को चालू करने के लिए अव्वल तो पहले दोगुनी रकम खर्च करनी पड़ेगी। इसके अलावा जगह का बंदोबस्त भी करना होगा। फिलहाल यह प्लांट 4 हजार वर्ग मीटर क्षेत्रफल में स्थापित है।
जीडीए के मुख्य अभियंता राकेश कुमार गुप्ता का कहना है कि प्लांट स्थापित करने वाली कंपनी से अभी इसका हैंडओवर नहीं लिया गया है। ऐसे में टूट-फूट व अन्य नुकसान के लिए कंपनी की ही जिम्मेदारी है। प्लांट शुरू कराने के लिए पॉवर कॉरपोरेशन के अधिकारियों से भी शीघ्र ही विमर्श किया जाएगा।