नई दिल्ली। साॅलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह छात्रों के हित में नहीं होगा कि परीक्षा ना हो। इस मामले में तत्काल दिल्ली और महाराष्ट्र के जवाब पर यूजीसी से हलफनामा तलब करे अदालत, क्योंकि उन्होंने परीक्षा रद्द कर दी है।
देश भर के विश्वविद्यालयों में फाइनल ईयर की परीक्षा करवाने को चुनौती देने वाली याचिका पर 10 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। UGC ने कोर्ट में दिल्ली और महाराष्ट्र सरकार के परीक्षा रद्द करने पर सवाल उठाया।
UGC की ओर से सॉलसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में कहा कि परीक्षा आयोजित की जाए या नहीं, यह फैसला UGC ही कर सकता है। क्योंकि केवल UGC ही डिग्री प्रदान कर सकता है। तुषार मेहता ने कहा कि इस मामले में सुनवाई की जाए।
अब एक बार फिर सुनवाई 14 अगस्त होगी। बता दें कि कोर्ट ने यूजीसी से इस मुद्दे पर जवाब दाखिल करने को कहा है। यहां दिल्ली सरकार ने अदालत को बताया कि उसने DU के अपने कॉलेजों में परीक्षा रद्द करने का फैसला किया है।
महाराष्ट्र सरकार ने कोर्ट को बताया कि 13 जुलाई को स्टेट डिजास्टर मैंनेजमेंट अथॉरिटी ने प्रस्ताव पास किया है कि परीक्षा ना कराई जाए। बता दें कि UGC द्वारा ग्रेजुएशन थर्ड ईयर के एग्जाम 30 सितंबर तक कराने का आदेश देने के मामले में ये सुनवाई हो रही है।
परीक्षा का विरोध कर रहे याचिकाकर्ता छात्रों ने कहा कि दिल्ली और महाराष्ट्र ने परीक्षा रद्द कर दी है। इस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि दिल्ली और महाराष्ट्र के फैसले पर जवाब दाखिल करने का समय दिया जाए। वहीं शुक्रवार को अगली सुनवाई पर कोर्ट ने यूजीसी से रिस्पॉस दाखिल करने को कहा है।
एसजी तुषार मेहता ने कहा कि यह छात्रों के हित में नहीं होगा कि परीक्षा ना हो। कोर्ट ने कहा है कि इस मामले में तत्काल दिल्ली और महाराष्ट्र के जवाब पर यूजीसी से हलफनामा तलब किया गया है क्योंकि उन्होंने परीक्षा रद्द कर दी है। भले ही इस मामले में अदालत कल सुनवाई करे।
सवाल ये है कि क्या राज्य सरकारें यूजीसी द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित होने वाली परीक्षाएं रद्द कर सकती हैं। बता दें कि पिछली सुनवाई में SC ने गृह मंत्रालय को COVID के कारण परीक्षाओं को रद्द करने पर अपना पक्ष रखने को कहा था।
इस पर केंद्र ने कहा था कि वो सोमवार तक अपना रुख तय करेगा। यूजीसी ने साथ ही ये कहा था कि किसी को भी इस धारणा के अधीन नहीं होना चाहिए कि सितंबर के अंत तक होने वाली अंतिम परीक्षा को रोक दिया जाएगा।
यूजीसी ने ये भी कहा कि छात्रों को अपनी परीक्षा की तैयारी जारी रखनी चाहिए। बता दें कि अलख आलोक श्रीवास्तव मामले में 31 याचिकाकर्ता छात्राओं के वकील हैं। उन्होंने कोर्ट में कहा था कि कोरोना संक्रमण के ऐसे माहौल में परीक्षाएं कैसे आयोजित की जा सकती हैं।
बता दें कि याचिकाकर्ताओं में COVID पॉजिटिव का एक छात्र भी शामिल है, उसने कहा है कि ऐसे कई अंतिम वर्ष के छात्र हैं, जो या तो खुद या उनके परिवार के सदस्य COVID पॉजिटिव हैं। ऐसे छात्रों को 30 सितंबर, 2020 तक अंतिम वर्ष की परीक्षाओं में बैठने के लिए मजबूर करना, अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त जीवन के अधिकार का खुला उल्लंघन है।
देशभर के विभिन्न विश्वविद्यालयों के करीब 31 छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका देकर यूजीसी द्वारा 6 जुलाई को जारी की गई संशोधित गाइडलाइंस को रद्द करने की मांग की है।
यूजीसी ने अपनी संशोधित गाइडलाइंस में देश के सभी विश्वविद्यालयों से कहा है कि वे फाइनल ईयर की परीक्षाएं 30 सितंबर से पहले करा लें। छात्रों ने अपनी याचिका में मांग की है कि फाइनल ईयर की परीक्षाएं रद्द होनी चाहिए और छात्रों का रिजल्ट उनके पूर्व के प्रदर्शन के आधार पर जारी किया जाना चाहिए।
बता दें कि इससे पहले 23 जुलाई को दिल्ली हाईकोर्ट ने यूजीसी को स्पष्ट करने के लिए कहा था कि क्या विश्वविद्यालयों द्वारा फाइनल ईयर की परीक्षाओं को मल्टीपल च्वॉइस क्वेश्चन (MCQ), ओपन च्वॉइस, असाइमेंट्स एंड प्रेजेंटेशन के आधार पर आयोजित किया जा सकता है।
बता दें कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने विश्वविद्यालयों की फाइनल ईयर/सेमेस्टर की परीक्षाओं और शैक्षणिक कैलेंडर को लेकर छह जुलाई को संशोधित गाइडलाइन जारी की थी। यूजीसी की नई गाइडलाइन के अनुसार इंटरमीडिएट सेमेस्टर के छात्रों का मूल्यांकन आंतरिक मूल्यांकन के आधार पर करने की बात कही गई थी।
इसके अलावा नये दिशानिर्देश के मुताबिक टर्मिनल सेमेस्टर के छात्रों का मूल्यांकन जो जुलाई के महीने में परीक्षाओं के माध्यम से किया जाना था, अब उनकी परीक्षाएं सितंबर 2020 के अंत तक आयोजित की जाएंगी
बता दें, यूजीसी ने पहले निर्णय लिया था कि विश्वविद्यालयों की फाइनल ईयर की परीक्षाओं का आयोजन होना चाहिए। वहीं फर्स्ट ईयर के छात्रों को सेकंड ईयर में प्रमोट कर दिया जाएगा। उन्हें नंबर इंटरनल असेसमेंट के आधार पर दिए जाएंगे।
बता दें, कोरोना वायरस के केस एक जुलाई तक कम होने की उम्मीद थी, जो नहीं हुए हैं। छात्रों और अभिभावकों के अलावा कई राज्य सरकारें भी इसका विरोध कर रही हैं।