Dainik Athah

रिटायर हो चुके डी. पी सिंह, आर. सी. मिश्रा, हीरालाल, आर. पी. पांडेय कैसे आएंगे कानूनी दायरे में

स्वर्ण जयंती पुरम भू आवंटन घोटाले की हाईकोर्ट में सुनवाई आज

सबसे अधिक फाइलों पर हीरालाल के ही हैं दस्तखत

आलोक यात्री
गाजियाबाद।
गाजियाबाद विकास प्राधिकरण में इन दिनों गड़े मुर्दे (यानी फाइल) उखाड़ कर कर्मचारियों व अधिकारियों के दायित्वों का परीक्षण चल रहा है। सर्विस बुक मैनुअल्स का हवाला देते हुए पूर्व उपाध्यक्ष से लेकर पूर्व ओएसडी हीरालाल और आरपी पांडेय तथा पूर्व सचिव आरसी मिश्रा के कामकाज के तौर तरीके परखे जा रहे हैं। यानी पड़ताल इस बात की हो रही है कि इनके दायित्व क्या थे और इन्होंने इनका कितना बेजा इस्तेमाल किया। समीक्षा का यह काम स्वर्ण जयंती पुरम आवासीय योजना में भू घोटाले के परिपेक्ष में चल रहा है।

साथ ही कर्मचारियों के दायित्व क्रियान्वयन का भी परीक्षण किया जा रहा है। यह और बात है कि पद से हटाने के निर्देश जारी होने और अधिकारी के साथ अटैच किए जाने के महीनों बाद भी बाबू कई योजनाओं की फाइलों का आज भी धड़ल्ले से निस्तारण कर रहा है। गौरतलब है कि इस भू आवंटन घोटाले की हाईकोर्ट में आज सुनवाई है। अदालत द्वारा यदि इस कवायद सहित यदि तमाम अन्य आख्याएं स्वीकार कर ली गई तो इस घोटाले की गाज मुट्ठी भर कर्मचारियों पर ही गिरना संभव है। यदि अदालत अपनी पुरानी मान्यता पर कायम रही तो जीडीए अधिकारियों पर फटकार लगने के साथ यह प्रकरण जांच के लिए सीबीआई के हवाले भी हो सकता है।

बीते 11 साल में इस महा घोटाले की जांच जिस रफ्तार से चली है कहा जा सकता है कि उसे देखकर कछुए भी चुल्लू भर पानी में डूब मरने की सोचने लगें। लेकिन हाईकोर्ट की फटकार के बाद जांच के खरगोश इतनी तेजी से दौड़ रहे हैं कि जो काम 11 साल में अंजाम तक नहीं पहुंचा उसे 11 दिन में ही अंजाम तक पहुंचा दिया गया। इस महा घोटाले में जांच से आगे का काम पुलिस को करना था। जीडीए अधिकारी लंबे समय से हाथ पर हाथ धरे बैठे थे तो पुलिस भी रेस्ट मोड़ में आ गई। हाईकोर्ट की फटकार के बाद बताया जाता है कि जीडीए द्वार पुलिस के साथ जांच में सामने आए कुछ तथ्य साझा किए गए हैं। मालूम हो कि इस प्रकरण की जांच मुरादाबाद मंडलायुक्त की अध्यक्षता में गठित उच्चस्तरीय समिति की देखरेख में संपन्न हुई थी। जिसने अपनी रिपोर्ट संभव है मार्च 2018में शासन को सौंप दी थी।

गौरतलब है कि इस जांच की आग से साढ़े चार साल तक कोई नहीं झुलसा। बताया जाता है कि दस दिन पहले पुलिस ने अग्रिम कार्रवाई हेतु जांच आख्या तलब की तो काफी हील हुज्जत के बाद पुलिस के साथ जांच के कुछ अहम तथ्य साझा किए गए। साझा किए गए तथ्यों तत्कालीन उपाध्यक्ष डीपी सिंह, तत्कालीन सचिव रमेश चंद्र मिश्रा, विशेषाधिकारी आरपी पांडेय और हीरालाल के नाम भी शामिल बताए जाते हैं। शेष नाम वही हैं -अनिल राणा, जगदीश शर्मा, अजय त्यागी, उदय सिंह, दीपक तलवार, प्रभात कुमार, सुरेंद्र कुमार कौशिक, राम चरित बिंद आदि।

पुलिस विभाग को प्रेषित इस रिपोर्ट में इस बात का स्पष्ट उल्लेख बताया जाता है कि किस कर्मचारी और अधिकारी को गाइड लाइंस के तहत क्या करना था? और उसने किया क्या? पत्रावली में आरोपियों द्वारा की गई प्रविष्टियों के आधार पर यदि आरोप निर्धारण होने लगे तो तत्कालीन ओएसडी हीरालाल द्वारा सर्वाधिक पत्रावलियां आवंटन हेतु अग्रसरित की गईं। उनके द्वारा करीब सवा सौ से अधिक पत्रावली अग्रसारित की गईं। अनिल राणा द्वारा भी सौ से अधिक पत्रावलियों पर दस्तखत किया जाना बताया गया है। करीब 30 फीसद फाइलों पर सहायक लागत लेखाकार प्रभात कुमार के दस्तखत बताए जाते हैं। लेखाकार सुरेंद्र कौशिक के भी करीब 65 फीसद फाइलों पर दस्तखत हैं। दैनिक वेतन भोगी लिपिक दीपक तलवार (जिसकी प्राधिकरण सेवा नियमावली में कोई हैसियत नहीं और विभिन्न आरोपों के बीच जिसे कई बार दंडित करने के बावजूद प्रोन्नत किया गया) के भी करीब तीन दर्जन फाइलों पर दस्तखत बताए गए हैं। पूर्व विशेषाधिकारी आरपी पांडेय और पूर्व सचिव आरसी मिश्रा द्वारा हस्ताक्षरित फाइलों की संख्या एक दर्जन भी नहीं है। तत्कालीन उपाध्यक्ष डीपी सिंह सहित फाइलें निस्तारित करने वाले एक दर्जन कर्मचारी और अधिकारी इस घोटाले में आरोपी हैं। जिनमें से तीन कथित आरोपियों की मृत्यु हो चुकी है। सात सेवानिवृत्त हो चुके हैं। दो निलंबन के बाद जबरन रिटायर कर दिए गए। जिन सर्विस रूल्स व गाइड लाइन्स का हवाला देते हुए यह जांच रिपोर्ट बनाई गई है, उसकी भी अपनी सीमाएं हैं। रिटायर हो चुके आईएएस और पीसीएस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का आधार जुटाने में ही प्राधिकरण कर्मचारियों के पसीने छूट रहे हैं। उनकी चिंता का विषय यह है कि उसकी जांच के दायरे में कई आईएएस और पीसीएस अधिकारी सहित बेहिसाब इंजीनियर्स भी आ रहे हैं।

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