स्वर्ण जयंती पुरम भू आवंटन घोटाले में नामचीन हस्तियों के चेहरे कब होंगे बेनकाब
घोटाले के आरोपी दैनिक वेतन भोगी लिपिक का कैसे हुआ प्रमोशन
आलोक यात्री
गाजियाबाद। स्वर्ण जयंती पुरम आवासीय योजना में भूखंड आवंटन घोटाले के बाद बोतल से निकला जिन्न जीडीए के आला अधिकारियों और कर्मचारियों से लेकर पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों के लिए रोज नई-नई मुसीबतें खड़ी कर रहा है। हाईकोर्ट के दखल के बावजूद इस प्रकरण की जांच से जुड़े जीडीए के तमाम आला अफसर अरसे तक आंखें मूंदे बैठे रहे। हाई कोर्ट के द्वारा जल्द से जल्द जांच पूरी कर चार्जशीट अदालत में दाखिल करने के निर्देश के बावजूद कोर्ट में चार्जशीट सीट पांच साल तक दाखिल नहीं हो सकी। हाई कोर्ट की ताजा फटकार के बाद आरोपी बताए जा रहे कर्मचारियों की आनन-फानन में गिरफ्तारी के लिए छापेमारी की जा रही है। इस प्रकरण में सबसे अहम बिंदु यह है कि कोर्ट के निदेर्शों का पालन हो कैसे रहा है?
करोड़ों रुपए के इस महाघोटाले में जांच की आड़ में कई खेल खेले गए। मसलन जांच में दोषियों के रूप में वर्क सुपरवाइजर व लेखाकार अजय त्यागी, मुख्य लिपिक जगदीश शर्मा, लिपिक रामचरित बिंद, लेखाकार सुरेंद्र कौशिक, लिपिक दीपक तलवार, सहायक लागत लेखाकार प्रभात कुमार, लिपिक उदय सिंह और अनु सचिव अनिल राणा का नाम ही अब तक सामने आया है। जबकि कमिश्नर स्तर की जांच में जेई से लेकर तत्कालीन उपाध्यक्ष भी आरोप के दायरे में शामिल बताए गए हैं लेकिन अब तक की कार्यवाही बताती है कि जीडीए के जांच अधिकारियों का सारा फोकस लिपिक स्तर तक ही सीमित रहा है। जबकि दूसरे हिस्से की जांच में तकरीबन सवा सौ अन्य आरोपी भी शामिल बताए गए हैं। जिनमें एक अवकाश प्राप्त आईएएस अधिकारी, 11 पीसीएस (कुछ रिटायर) अधिकारी, 48 इंजीनियर के अलावा 17 प्रवर्तन प्रभारियों के नाम भी सामने आए थे। इसके अलावा सचिव व संयुक्त सचिव स्तर के चार- चार, विशेषाधिकारी स्तर के तीन और अपर सचिव स्तर के एक अधिकारी भी शामिल थे। सवाल यह उठता है कि इतनी लंबी फेहरिस्त की जांच आख्या पटल पर आज तक रखी क्यों नहीं गई? कहा जा सकता है कि जांच के नाम जीडीए के अफसरान मरे हुए हाथी पर ही तांडव कर रहे हैं।
इस प्रकरण में अब तक अजय त्यागी और जगदीश शर्मा की गिरफ्तारी हो चुकी है। उदय सिंह, प्रभात कुमार और अनिल राणा की मौत जांच के दौरान हो गई थी। सुरेंद्र कौशिक बीते जून के आखरी दिन रिटायर होकर घर चले गए। उनकी पेंशन की फाइल प्राधिकरण में विचाराधीन है। सवाल यह उठता है सुरेंद्र कौशिक यदि इस घोटाले में आरोपी हैं तो उन्हें क्लीन चिट देते हुए अवकाश प्राप्त लाभ कैसे प्रदान किए जा सकते हैं? उनकी अर्जित अवकाश के बदले नकद भुगतान की फाइल भी प्राधिकरण में विचाराधीन है। एक प्रश्न यह भी है कि दीपक तलवार जो घोटाले के समय दैनिक वेतन भोगी लिपिक के पद पर तैनात थे और बतौर आरोपी संदिग्धों की सूची में शामिल थे तो उन्हें पदोन्नत कर स्थाई लिपिक कैसे बना दिया गया?
और भी कई सवाल हैं। मसलन सहायक लागत लेखाकार प्रभात कुमार जो इस प्रकरण में सह आरोपी हैं की मृत्यु के पश्चात उनकी पेंशन पर यह कहते हुए रोक लगा दी गई कि उनका पद शासन से स्वीकृत नहीं है। यदि उनका पद शासन से स्वीकृत नहीं था तो वह आजीवन जीडीए में नौकरी कैसे करते रहे?
इस समाचार के प्रकाशन के अगले तीस घंटे में कई चौकाने वाले नतीजे सामने आ सकते हैं। जिसे लेकर घोटाले में शामिल कई नौकरशाहों की घडकनें? बढ़ी हुई हैं।