भाजपा प्रत्याशी के विरोधी मतों में भी हुआ बंटवारा लाभप्रद
कांग्रेस- बसपा को उम्मीद प्रत्याशी विरोधी मत उन्हें मिले
अथाह संवाददाता
गाजियाबाद। पहले चरण के मतदान के तीन दिन बीतने के बाद प्रत्याशियों एवं कार्यकर्ताओं ने अपनी थकान उतारने के बाद अब जीत- हार को लेकर चर्चा शुरू कर दी है। इस चर्चा के दौरान यदि भारतीय जनता पार्टी की बात करें तो उसके पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं की नजर मुस्लिम मतों के बंटवारे पर टिकी हुई है। वहीं, कांग्रेस- बसपा का जोर इस बात पर रहा है कि भाजपा प्रत्याशी के विरोधी उनके पाले में आ जायें।
बता दें कि जिले में सबसे अधिक विरोध गाजियाबाद शहर सीट से भाजपा प्रत्याशी अतुल गर्ग का देखने को मिला। यहीं कारण था कि भाजपा के पश्चिमी उत्तर प्रदेश उपाध्यक्ष केके शुक्ला पार्टी से बगावत कर बसपा के टिकट पर गाजियाबाद शहर सीट से चुनाव लड़े। इसके साथ ही भाजपा पार्षद पिंटू सिंह, प्रो. आशुतोष गुप्ता, रानी देवश्री निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरे। यदि देखा जाये तो लाइन पार क्षेत्र में अतुल गर्ग विरोधी मत इन चारों प्रत्याशियों में विभक्त हो गये। यदि गाजियाबाद शहर को देखा जाये तो शहर में अतुल गर्ग के विरोधी कांग्रेस प्रत्याशी सुशांत गोयल का अंदरखाने समर्थन कर रहे थे।
सीधा सीधा देखा जाये तो कहीं पर भी भाजपा प्रत्याशी के विरोधी किसी प्रत्याशी के समर्थन में खड़े नजर नहीं आये। इससे भाजपा ने राहत की सांस ली है। यहीं कारण है कि भाजपा को चारों तरफ अपनी जीत नजर आ रही है।
इसके साथ ही प्रदेश की स्थिति देखी जाये तो मुस्लिम मत एकजुट होकर समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के साथ नजर आये। यहीं स्थिति पूरे जिले में थी। लेकिन गाजियाबाद शहर में स्थिति इसके उलट नजर आई। सपा प्रत्याशी को दौड़ से बाहर देखकर मुस्लिम मतों मतों में जमकर बंटवारा नजर आया। मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में कांग्रेस के साथ ही बसपा एवं सपा प्रत्याशियों को भी वोट मिले। इस प्रकार भाजपा के लिए राहत की बात यह है कि मुस्लिम मत किसी एक के पक्ष में नहीं पड़े।
भाजपा के रणनीतिकार जहां अपनी जीत तय मान रहे हैं, वहीं कांगे्रस के सुशांत गोयल भाजपा के बागियों के साथ ही मुस्लिम मतों को अपने पक्ष में मान रहे हैं तथा अपनी जीत सुनिश्चित मान रहे हैं। यहीं स्थिति बसपा के केके शुक्ला की है। वे बसपा के कैडर वोटों के साथ ही भाजपा प्रत्याशी विरोधियों को अपने साथ मान रहे हैं। इतना ही नहीं मुस्लिम मतों के बड़े हिस्से को अपने पक्ष में मान रहे हैं। लेकिन यह तो दस मार्च को ही पता चलेगा कि आखिरकार ऊंच किस करवट बैठा।