Dainik Athah

होइहि सोइ जो राम रचि राखा

लेखक
कविलाष मिश्रा
वरिष्ठ पत्रकार

बात राम मंदिर की हो और जन भावनाओं की चर्चा न हो, यह बेमानी होगी। यह सच है कि किसी भी आंदोलन को स्वरूप और चेहरा लीडरसीप देता है लेकिन इसके साथ यह भी उतना ही सच है कि संबंधित विषय-वस्तु से जन-भावनाओं का जुड़ाव कितना है।

जब सामने राम मंदिर हो, मेरे राम, हमारे राम, सभी के राम, तुलसी के राम, बाल्मीकि के राम , कबीर के राम, सूर के राम, कण-कण में राम हो तो जनभावनाओं का उल्लास चरम पर होगा ही। इसलिए, जब भी राम मंदिर की बात हुई तो आस्था की लहरों में जन भावनाओं का वह सैलाब देखने को मिला जिसने समय-समय की सरकारों को सोचने पर विवश कर दिया राम को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। जो राम के साथ रहें वे आज सत्ता के शिखर पर हैं। अदालतों को विवश किया कि फैसला जो भी हो वह समयानुसार करें। बहुत देर न करें।

जन भावनाओं से आंदोलन भी हुआ तो इसी भावनाओं ने धैर्य का भी परिचय दिया। समय-समय पर की भावनाओं ने सिद्ध किया कि वह किसी अन्य के भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं चाहते। इसलिए नवंबर 2019 में जब हिन्दुओं के पक्ष में फैसला आया तो बहुसंख्यक वर्ग हिंदू ने अति उत्साह का परिचय नही दिया। बात आगे बढाएं तो आज जब राम मंदिर के भूमि पूजन के साथ शिलान्यास हुआ है तो हिंदू उत्साहित तो है लेकिन अति उत्साहित नहीं। कारोनाकाल में काफी सादगी के साथ भूमि पूजन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। महाबली हनुमान जी से आज्ञा लेने के बाद सनातन पद्धति से, वैदिक रीति-नीति से, मंत्रोंचारण के बीच गणेश वंदना से शरू करके कुलदेवी काली के मंत्र से भूमि-पूजन पूजा पूर्ण हुई।

जब आंदोलन की बात होगी तो सारथी और महारथी को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है। महारथी के रूप में जब लाल कृष्ण आडवाणी सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा पर सवार हुए तो उस रथ के सारथी नरेंद्र मोदी थे। वहीं नरेंद्र मोदी जो मन ही मन यह संकल्प लिए थे कि राम लला का दर्शन तभी जब मंदिर निर्माण का कार्यक्रम हो। वहीं मोदी आज देश के प्रधान मंत्री हैं और भूमि पूजन उन्हीं के हाथों हुआ है। प्रधान मंत्री की विस्तृत चर्चा होनी ही चाहिए क्योंकि मंदिर निर्माण के फैसले साथ देश के आंतरिक हालत के साथ-साथ, विश्व परिदृश्य पर भारत का पहले से ही पक्ष रखना, एक कूटनीतिक के रूप में, एक राजनीतिक के रूप में, विदेश नीति के रूप में- उन्होंने जो शासनिक परिचय दिया वह अपने आप में दूरदर्शिता से पूर्ण है, राजनीतिक शास्त्र की एक संपूर्ण पुस्तक हैं

श्री मोदी राम मंदिर आंदोलन में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े रहे हैं। अयोध्या की धरती पर करीब 29 साल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लौटे तो उनके कद में काफी परिवर्तन हो चुका हैं। तब नरेंद्र मोदी गुजरात बीजेपी के युवा नेता थे और आज देश के प्रधानमंत्री है। इससे पहले कन्याकुमारी से शुरू हुई तिरंगा यात्रा के दौरान नरेंद्र मोदी अयोध्या मुरली मनोहर जोशी के साथ 18 जनवरी 1992 को पहुंचे थे। तब अयोध्या फैजाबाद हुआ करता था और यहीं के जीआईसी मैदान में एक सभा को बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी के साथ नरेंद्र मोदी ने भी संबोधित किया था।

बताया जाता है कि तब नरेंद्र मोदी ने अनौपचारिक बातचीत के दौरान पत्रकारों से कहा था कि अब अगली बार अयोध्या राम मंदिर निर्माण के वक्त ही आएंगे। समय का खेल देखिए कि राम भक्त मोदी के ही हाथों आज 5 अगस्त 2020 को राम मंदिर निर्माण का भूमि पूजन किया गया।

इसी को देखते हुए राम चरित मानस की एक चौपाई है कि…
होइहि सोइ जो राम रचि राखा।
को करि तर्क बढ़ावै साखा॥
जो कुछ राम ने रच रखा है, वही होगा।

तर्क करके कौन शाखा बढ़ावे। संयोग जैसा कुछ भी नहीं होता। होता तो वहीं है जो राम जी ने रच रखा है। इसके अतिरिक्त कुछ सोचना व्यर्थ है।


यह ऐतिहासिक पल सभी को आनंदित व गौरवान्वित करने वाला है। भगवान राम के अस्तित्व को मिटाने की कोशिशों के बावजूद वह आज भी हमारे हृदय में रहते हैं और वह हमारी संस्कृति का आधार हैं। सदियों बाद अयोध्या में भगवान राम का अभिषेक होगा। कई साधुओं, संतों और श्रद्धालुओं ने मंदिर निर्माण का सपना साकार करने के लिए कुबार्नी दी और यह सपना जल्द ही पूरा होगा। लोगों ने मंदिर का निर्माण देखने के लिए किए संघर्ष में कई मुश्किलों का सामना किया। उम्मीद हैं कि इस काम के बाद देश में राम राज्य की प्राचीन अवधारणा के साकार होने की शुरूआत होगी। कई लोगों की जन्म-जन्म की तपस्या के बाद अयोध्या में भगवान राम की जन्मभूमि पर उनके मंदिर के निर्माण की शुरूआत हुई है।

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