Dainik Athah

भाजपा नहीं अफसरों की तानाशाही है विधायकों- मंत्रियों के दल- बदल का कारण

भाजपा में भगदड़ की जमीन तो विधानसभा में विद्रोह के समय ही तैयार हो गई थी

अफरशाही से परेशान रहे सत्तारूढ़ दल के विधायक- मंत्री, कार्यकर्ता

अशोक ओझा
लखनऊ।
केंद्र व प्रदेश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी में भगदड़ की जमीन तो दो वर्ष पूर्व ही तैयार हो गई थी। बस इंतजार था तो समय का। वह समय अब आया है। इसके लिए नेतृत्व के साथ ही बे लगाम अफरशाही को मुख्य रूप से जिम्मेदार माना जा रहा है।

बता दें कि जब से प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी थी उस समय से ही मंत्रियों के साथ ही विधायकों एवं आम कार्यकर्ताओं में असंतोष पनपना शुरू हो गया था। इसका मुख्य कारण प्रदेश की राजधानी एवं जिलों में तैनात अफसरों द्वारा तवज्जो न देना था। इसकी अनेक मौकों पर शिकायतें भी हुई, लेकिन कभी जिले के प्रभारी मंत्रियों तो कभी प्रदेश संगठन ने कार्यकर्ताओं को डांट कर अथवा प्यार से शांत करने का प्रयास किया। इसके चलते पार्टी कार्यकर्ता संगठन का काम तो करते रहे, साथ ही अपनी ही सरकार के साथ संगठन को कोसते रहे।

यदि प्रदेश में गाजियाबाद जिले की बात करें ‘इसका कारण यह है कि इसी जिले के विधायक के तेवरों के बाद सरकार के पसीने छूटे थे’ जिले में तैनात अफसरों ने विधायकों एवं मंत्रियों को तवज्जो देना बंद कर दिया था। इसी नाराजगी को लोनी विधायक नंद किशोर गुर्जर ने दिसंबर 2019 में विधानसभा में उठाया तो भाजपा के दो सौ से ज्यादा विधायक अपनी ही सरकार के खिलाफ एकजुट हो गये थे। इसके बाद डैमेज कंट्रोल शुरू किया। इस दौरान किसी को प्यार से सहलाया गया तो, किसी को फटकार लगाई गई। सरकार व संगठन ने मिलकर जैसे तैसे स्थिति पर नियंत्रण किया। बावजूद इतनी बड़ी घटना के सरकार व संगठन ने सबक नहीं सीखा।

संगठन भी पांच वर्ष रहा दो फाड़

पूरे पांच वर्ष तक संगठन भी दो फाड़ रहा। एक गुट बाबा के समर्थन में रहा, तो दूसरा गुट सरकार की कार्यप्रणाली पर दबे सुर में अपनी बात रखता था। लेकिन वह गौण हो जाता था। जब संगठन व सरकार आमने- सामने आने लगे तो इसी वर्ष केंद्रीय नेतृत्व को हस्तक्षेप करना पड़ा।

कुछ विधायक ही अपने लाभ के लिए देते थे क्लीन चिट

अफसरशाही का हाल यह रहा कि जब भी उनके विरोध में स्वर मुखर होने लगते थे अफसर एक विधायक के ऊपर हाथ रख लेते थे। मौका पड़ने पर विधायक उन अफसरों का बचाव करना शुरू कर देता था जिसके खिलाफ कुछ समय पूर्व वह विधायक खुद बयान दे रहा होता था।

मुख्यमंत्री के नजदीकी को देते थे भाव

अफसरशाही का हाल यह था कि वे यह देख लेते थे जिले में कौन नेता ऐसा है जिसकी पहुंच पंचम तल अथवा मुख्यमंत्री के यहां तक है। बस एक उसी को भाव दिया जाता था। प्रदेश के अधिकांश जिलों में यहीं स्थिति रही।

भाजपा सूत्रों के अनुसार वर्तमान में जो स्थिति उत्पन्न हो रही है उसके लिए संगठन के जिम्मेदार लोगों के साथ ही सरकार के अपने ही बंद कमरे की बैठकों में जमकर भड़ास निकाल रहे हैं। उनका कहना है कि यदि पहले से ही विधायकों- कार्यकर्ताओं को सम्मान दिया जाता तो शायद यह स्थिति उत्पन्न नहीं होती।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *