इस समय जबकि टिकट वितरण का दौर चल रहा है ऐसे समय में गोपनीय सर्वे ने विधायकों के साथ ही दावेदारों की चिंता बढ़ा दी है। एक तरफ जब दिल्ली में भाजपा का प्रदेश एवं केंद्रीय नेतृत्व पहले एवं दूसरे चरण के लिए टिकटों पर मंथन कर रहा था उस समय केंद्रीय आला नेताओं ने गोपनीय सर्वे करवाना शुरू कर दिया। गुप्त तरीके से सर्वे करवाने के आदेश हुए साथ ही तेजी के साथ सर्वे शुरू हुआ। लेकिन बैठक में शामिल नेताओं को इसकी भनक भी नहीं लग सकी। भाजपा मुख्यालय से छनकर आ रही खबरों के अनुसार इस गोपनीय सर्वे की रिपोर्ट भी केंद्रीय आला नेताओं तक पहुंच गई है। इस रिपोर्ट ने कई प्रत्याशियों के भविष्य पर सवाल खड़े कर दिये हैं। एक खबरिया चैनल जो भाजपा समर्थक माना जाता है को लिस्ट आऊट कर दी गई। लेकिन सूची शुक्रवार शाम तक भी घोषित नहीं हो सकी। सूची न जारी होने पर एक बार फिर धड़कनें बढ़नी स्वाभाविक है। यदि हम कहें तो गोपनीय सर्वे के आधार पर कुछ नामों पर नये सिरे से विचार हो रहा है तो गलत नहीं होगा। यदि ऐसा हो गया तो वर्तमान के कुछ विधायकों को मैदान में उतरने का मौका नहीं मिल सकेगा। भाजपा सूत्रों की बात में दम है तो पश्चिम के इन विधायकों का रिपोर्ट कार्ड खराब है। इसमें संगठन से तालमेल के साथ ही जनता में उनकी छवि पर मुख्य रूप से ध्यान केंद्रीत किया गया है। इस सूरत में जिलों के अध्यक्षों के फोन की घंटी एक बार फिर बज सकती है। इसका मतलब समझने में किसी को संकोच नहीं होना चाहिये।