उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की उलटी गिनती शुरू हो गई है। यदि प्रधानमंत्री की लखनऊ में रैली होती है (कल सुबह तक तय हो जायेगी) तो नौ जनवरी को देर शाम अथवा इसके बाद चुनाव की तिथियों की घोषणा हो जायेगी। यदि रैली स्थगित होती है तो छह जनवरी तक चुनाव की तिथियों की घोषणा हो जायेगी। इस समय प्रदेश के साथ ही देश में कोई चर्चा है तो यह कि चुनाव के बाद प्रदेश में कमल का फूल खिलेगा अथवा साइकिल रफ्तार पकड़ेगी। राजनीतिक विश्लेषकों की बातों पर ध्यान दें तो चुनाव की घोषणा के बाद एक सप्ताह में यदि नजर आ जायेगा कि सरकार कौन बना रहा है। यदि अफसर चुनाव में भाजपा वालों पर सख्ती करते हैं तो स्पष्ट है कि सरकार बदल रही है। यदि नीचे से लेकर ऊपर तक के अफसरों की बात करें तो वर्तमान समय में ऐसे अफसरों की कमी नहीं जिन्हें बाबा के फिर से मुख्यमंत्री बनने की उम्मीद है। लेकिन प्रदेश की राजधानी में बैठे वे अफसर जो साइड लाइन है उन्हें उम्मीद है कि चुनाव में साइकिल तेजी गति से दौड़ेगी। एक ब्यूरोक्रेट कहते हैं कि चुनाव की घोषणा के बाद जिस दल में भगदड़ मचे तो समझो वह तो गयो। जिस पार्टी में आमद बढ़ेगी उसकी सरकार आने की उम्मीद बढ़ जाती है। लेकिन अब नजर चुनाव आयोग की तरफ लगी है। चुनाव की घोषणा के बाद अफसरों खासकर ब्यूरोक्रेट्स की चाल ही तय कर देगी कि ऊंट किस करवट बैठने वाला है।