हमने जलवा तो अपना दिखा ही दिया, इक असम्भव को सम्भव बना ही दिया। साँप के सूंघे से,सब थे गुमसुम यहाँ, वक्त की बाँसुरी ने जगा ही दिया। शमा की लौ से परवाने जब जल उठे, तब उसे आँधियों ने बुझा ही दिया। काले शीशे का घूँघट थी ओढ़े शमा, वह नकाब उसके सर से उठा ही दिया। हम गिरें या बढे मंज़िलो की तरफ, आसमाँ अब तो सर पे उठा ही लिया। हमको खुशियाँ मिलें,या मिलें रंजोगम, रंग महफ़िल में पंकज ने ला ही दिया।
( स्व .) जगदीश पंकज