देश की राजधानी दिल्ली समेत पूरे दिल्ली एनसीआर इन दिनों प्रदूषण की विभीषिका को झेल रहा है। प्रदूषण के मामले में देश की सर्वोच्च अदालत लगातार विभिन्न एजेंसियों के साथ ही ब्यूरोक्रेसी को भी निशाने पर ले रही है। इन दिनों निर्माण कार्यों के साथ ही र्इंट भट्ठे तक प्रदूषण के चलते बंद करने के आदेश है। गाजियाबााद जिले की हालत को देखते हुए यह लगता है कि सर्वोच्च अदालत यदि एजेंसियों के साथ ही ब्यूरोक्रेसी पर सख्त टिप्पणी कर रही है तो वह गलत नहीं है। मैं अपनी बात करूं तो प्रति दिन करीब 70 किलो मीटर का सफर जिले में ही तय करता हूं। प्रताप विहार क्षेत्र में भाऊराव देवरस योजना में एक बिल्डर लगातार काम कर रहा है। लेकिन क्या मजाल जो कोई उधर झांक लें। कारण सभी विभागों को उनका हिस्सा पहुंच जाता है। अब बात करें हाई स्पीड रेल योजना की तो मोदीनगर से लेकर गाजियाबाद तक अनेक स्थानों पर टूटी सड़कों के कारण गाजियाबाद- मेरठ मार्ग पर धूल के गुबार उठते रहते हैं, जबकि जितने क्षेत्र में हाई स्पीड रेल का काम चल रहा है वहां पर सड़क बनाने तथा मरम्मत की जिम्मेदारी आरआरटीएस की है।। कहने को तो आरआरटीएस ने पानी का छिड़काव करने के लिए गाड़ियां लगाई हुई है, ये गाड़ियां केवल पेड़ों के ऊपर ही पानी का छिड़काव करती है। साफ है केवल दिखावे के लिए पूरा काम हो रहा है। इसके साथ ही जिले में खुले आम अवैध खनन हो रहा है जो प्रदूषण को बढ़ाने में मददगार हो रहा है। स्थिति स्पष्ट है कि पूरा अमला केवल दिखावे में लगा है। धरातल पर काम न के बराबर।