पिछले कुछ दिनों से जिले में अपराधों की लगता है बाढ़ सी आ गई है। कहीं हत्या, कहीं लूट, कहीं बड़ी चोरी अथवा डकैती। इनके बीच ही जिले से एकाएक 31 थाना प्रभारियों के गैर जिला तबादले। इनमें से 13 तो जिले के विभिन्न थानों के थानेदार अथवा शुद्ध भाषा में प्रभारी थे। जिले में कप्तान भी नये। इसके साथ ही विभिन्न जिलों से 26 थानेदारों की आमद हो रही है। लेकिन एक साथ इतनी बड़ी संख्या में थाना प्रभारियों के तबादले शायद लंबे समय बाद हुए। दैनिक अथाह ने तीन दिन पहले ही इशारा कर दिया था कि तीन साल अथवा इससे अधिक समय से जमे पीसीएस, पीपीएस एवं थानों के प्रभारियों ने बोरिया बिस्तर बांध लिए हैं। अथाह की यह भविष्यवाणी सही साबित हुई। लेकिन सवाल एक साथ इतने इंस्पेक्टरों के तबादले से उत्पन्न होने वाली कानून व्यवस्था की समस्या को लेकर है। जिले में ऐसे कई थाना क्षेत्र हैं उदाहरण के लिए लोनी थाना क्षेत्र में अपराधों में वृद्धि हुई है।
अब पहले तो कप्तान के लिए 13 थानों में एक दम से बदलाव करना कठिन होगा। किसे कहां तैनात किया जाये इसको लेकर भी माथापच्ची होगी। जो नये आ रहे हैं उनके इतिहास को भी पुलिस खंगालेगी कि इनका क्या इतिहास रहा है। कौन थानों में बैठाने लायक है, कौन लाइन के लायक। बहरहाल यह सिरदर्द कप्तान के साथ ही छोटे कप्तानों का होगा। इस बंपर तबादले से उन इंस्पेक्टरों के चेहरे पर मुस्कान नजर आने लगी है जो लाइन में बैठे बैठे अपना वजन बढ़ा रहे हैं। अब जिले में सिफारिशों का दौर भी शुरू होगा। लेकिन कप्तान एवं देहात के छोटे कप्तान के तेवरों को देखते हुए यह आसार कम ही है कि जुगाड़ चल जायेगा। देखते हैं आगे क्या होता है। सभी के साथ हमारी भी नजरें इस पर लगी है।