भारतीय जनता पार्टी ही नहीं भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में से एक पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कर्म भूमि से उनकी ही तस्वीर गायब हो जाये तो अखरेगी ही। वह भी देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के कार्यक्रम में। अटलजी ने वर्षों तक संसद में लखनऊ के साथ ही पूरे उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व किया है। अटलजी के बाद उनके प्रतिनिधि रहे लालजी टंडन एवं अब दो बार से राजनाथ सिंह। जब राजनाथ सिंह ने गाजियाबाद को छोड़कर लखनऊ से चुनाव लड़ने की ठानी थी उस समय वे गाजियाबाद का संसद में प्रतिनिधित्व कर रहे थे। जब गाजियाबाद छोड़कर लखनऊ जाने की बात गाजियाबादियों ने पूछी तो उन्होंने यह कह कर बात समाप्त कर दी कि पार्टी का निर्णय है कि मुझे अटलजी के क्षेत्र से चुनाव लड़ना है। लखनऊ वे अटलजी के पैर छूकर एवं उनका आशीर्वाद लेकर गये थे। यह उनकी प्रदेश की राजधानी में दूसरी पारी है। लेकिन जिस प्रकार होर्डिंग, बैनर से अटलजी की तस्वीर गायब हो रही है वह राजनाथ सिंह को अखर गई। फिर क्या था लखनऊ के पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं की क्लास तो लगनी ही थी।
इतना ही नहीं बातों बातों में उन्होंने नगर विकास विभाग की भी खिंचाई कर दी। विरोधी दलों के नेता एवं समर्थकों को भी राजनाथ सिंह में अटलजी की छवि नजर आती है। अटलजी ही उनके प्रेरणा स्रोत है। वह ऐसे ही नहीं लीक से हटकर भी राजनाथ सिंह काम करते हैं। जिस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व खुद अटलजी ने किया हो, वहीं से उनकी तस्वीर गायब होना यह भी दर्शाता है कि भाजपा कार्यकर्ता एवं नेता पूर्व को भूलकर वर्तमान की तरफ ही ध्यान देते हैं। यह स्थिति सभी स्थानों पर है। जो सामने हो उसे नमस्कार की प्रवृत्ति से बाहर आने की आवश्यकता है। अटलजी को भूलने का अर्थ जड़ों से खत्म होना है। इसका अर्थ सभी समझते हैं।