कोरोना की पहली लहर के बाद से ही स्कूल बंद है। बच्चों को घर से पढ़ाई करनी पड़ रही है। मोबाइल पर पढ़ाई करने के कारण बच्चों की आंखों में भी परेशानी की शिकायतें आने लगी है। स्कूल बंद होने का बच्चों के स्वास्थ्य के साथ ही उनके भविष्य पर भी प्रभाव पड़ना लाजिमी है। बच्चों को चिंता नहीं है कि उनके भविष्य का क्या होगा। लेकिन अभिभावक सोच सोच कर सूखते जा रहे हैं। अभिभावकों को भी पता है कि स्कूल न जाने पर घर कितनी पढ़ाई | बच्चा कर लेगा। इसके साथ ही निजी स्कूलों के शिक्षकों के सामने घर चलाना बड़ी समस्या हो गई है। कारण कि या तो स्कूलों ने उनकी छंटनी कर दी है। अथवा पैसे कम करके दिये जा रहे हैं। जबकि सरकारी स्कूलों के शिक्षकों की मौज है। उन्हें घर बैठे भारी भरकम वेतन मिल रहा है। स्कूल जाना भी केवल नाम के लिए सीधे शब्दों में कहा जाये तो इससे किसी की मौज तो कोई पस्त है।
इसमें कोई पिस रहा है तो निजी स्कूलों के शिक्षक, अभिभावक एवं बच्चे। देश में धीरे धीरे पूरी क्षमता से बसें चल रही है। रेल चल रही है। अब तो मेट्रो भी पूरी क्षमता से चल रही है। होटल रेस्टोरेंट में भी भीड़ है। बाजारों के तो कहने ही क्या ऐसी स्थिति में केंद्र व प्रदेश सरकार को बच्चों के भविष्य की चिंता करते हुए क्या स्कूलों को पाबंदी के साथ नहीं खोलना चाहिये। अब इसके ऊपर भी सरकारों को गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। आखिर कब तक बच्चों के स्कूल जाये बगैर अभिभावक फीस भरते रहेंगे। यह आवाज अभिभावकों के साथ ही निजी स्कूलों के शिक्षकों की भी है। उम्मीद है कि जल्द ही इस मामले में सरकारें कोई निर्णय लेगी।