– जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में
– अपने अपने दलों को दगा देने में सभी जिला पंचायत सदस्यों में रही होड़
– एक ही छत के नीचे आ गये सभी दलों के जिला पंचायत सदस्य
अथाह संवाददाता
गाजियाबाद। जिला पंचायत चुनाव में सभी दलों के जिला पंचायत सदस्यों की पोल खुल गई। इतना ही नहीं दलीय निष्ठाएं भी तार तार हो गई। यहीं भाजपा की जीत का सबसे बड़ा कारण बना।
जिला पंचायत में भाजपा के मात्र दो जिला पंचायत सदस्य थे। एक भाजपा के पूर्व क्षेत्रीय उपाध्यक्ष बसंत त्यागी की पत्नी ममता त्यागी एवं दूसरा भाजपा नेता ईश्वर मावी की पुत्रवधु अंशु मावी। दो वोट होने के बावजूद भाजपा ने सबसे पहले जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए प्रत्याशी घोषित कर दिया। जबकि बसपा के पांच, रालोद एवं सपा के दो- दो जिला पंचायत सदस्य थे। एक निर्दलीय परमिता कसाना थी। सबसे पहले परमिता कसाना ने ममता त्यागी का समर्थन किया।
भाजपा सूत्रों के अनुसार इसके बाद रणनीति बनाकर भाजपा ने एक के बाद एक जिला पंचायत सदस्यों को अपने पत्र में करने की रणनीति तैयार करनी शुरू की। इस रणनीति में बसपा के शौकेंद्र चौधरी भी तुरुप का इक्का साबित हुए। एक विधायक का प्रयास था कि शौकेंंद्र को रालोद से अध्यक्ष से प्रत्याशी बना दिया जाये। लेकिन शौकेंद्र के ममता त्यागी के पाले में जाने के साथ ही वह रणनीति विफल हो गई। विधायक एवं बसंत त्यागी के बीच वर्षों से खुन्नस चली आ रही है। इसके बाद एक एक कर अन्य जिला पंचायत सदस्यों में सैंध लगाने का काम शुरू हुआ। जहां भी हाथ डाला जाता वहीं पर भाजपा के रणनीतिकारों को सफलता मिलती चली गई। इन रणनीतिकारों ने हर दल में सैंध लगाकर उनके वोटों को अपने पक्ष में कर लिया।
– विपक्ष का नामांकन न हो इसकी रणनीति भी पहले से ही बनाई गई
भाजपा सूत्र बताते हैं कि प्रारंभ से ही यह प्रयास किये जा रहे थे कि विपक्षी प्रत्याशी का नामांकन न होने पाये। इसके लिए प्रयास करते हुए बसपा के एक जिला पंचायत सदस्य को एक पूर्व विधायक के साथ गोवा की सैर पर भेजा गया। इसके बाद रजनी का वोेट भी पक्ष में कर लिया। लेकिन ऐन वक्त पर सपा में अपना रूतबा बचाये रखने के लिए रजनी के आका ने सपा वालों को सूचना दे दी कि उन्हें होटल में बंद कर रखा गया है। इसके बाद ही पूरे मामले को लेकर दिनभर हंगामा चलता रहा।
– केवल एक वोट ही थी नसीम बेगम के पास
जानकार सूत्रों के अनुसार जिस प्रकार नसीम बेगम नामांकन नहीं कर सकी इससे यह साबित हो गया कि उनके पास मात्र एक ही वोट थी। वह भी रालोद कोटे की दया वाल्मीकि की। अन्य वोटर किसी न किसी बहाने से बाहर चले गये एवं पार्टी वालों को बता दिया कि वे किसी काम से जा रहे हैं। इसके साथ ही उनके फोन भी बंद हो गये। दोनों दलों के पास छह वोट होने के बावजूद वे नामांकन तक नहीं कर सके।
– सांप भी मर जाये लाठी भी न टूटे
जिस प्रकार विपक्षी दलों के छह में से चार मत गायब हुए थे उसमें रणनीति यह रही कि किसी की बीमारी अथवा किसी ने रिश्तेदारी में जाने का बहाना कर दिया। इसके साथ ही तीन बजे का वक्त निकलने के बाद उनके फोन भी खुल गये। इसमें वे पार्टी के सामने कह सकते हैं कि वे तो साथ थे। अब यह कौन कहे कि वे भाजपा के साथ थे।