- ग्रामीण क्षेत्रों में शुरू हुई पंचायत चुनावों की तैयारी
- कुछ चढ़ेंगे आरक्षण की भेंट, कुछ को निगल जायेगा परिसीमन
- वर्तमान जिला पंचायत सदस्यों ने गांवों में डालना शुरू किया डेरा
अथाह संवाददाता
गाजियाबाद। पंचायत चुनावों को लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में राजनीति शुरू हो गई है। प्रधानों के साथ ही बीडीसी और जिला पंचायत सदस्यों के चुनाव के लिए होने वाले त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर अभी से जोड़ तोड़ भी शुरू हो गई है। दावेदार अपनी सीट को सुरक्षित करना चाहते हैं।
त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव वैसे तो मई माह में होने की उम्मीद है। भीषण गर्मी का दौर आने से पहले ही गांवों में चुनावों की सरगर्मी भी शुरू हो गई है। दावेदार तैयारी में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते। चुनाव में जो भी दावेदार है उन्होंने शहर से गांवों का रूख करना शुरू कर दिया है। जो जिला पंचायत सदस्य ग्रामीणों की सुध नहीं लेते थे उन्होंने गांवों में डेरा डालना शुरू कर दिया है। इस बार के पंचायत चुनाव में प्रधान से लेकर ब्लाक प्रमुख पदों तक नये लोग नजर आ सकते हैं। जिले के चारों प्रमुखों की नजर भी इस बार जिला पंचायत पर लगी हुई है।
यहीं कारण है कि ब्लाक प्रमुखों ने अब अपनी पूरी तैयारी जिला पंचायत को लेकर शुरू की है। जो भी जिस सीट से चुनाव लड़ने के इच्छुक है उन्होंने उन संभावित सीटों पर जोड़ भाग करना भी शुरू कर दिय है। जानकारी के अनुसार कुछ नेताओं को जिला पंचायत वार्डों के परिसीमन से राहत मिली है। परिसीमन ने वर्तमान कुछ सदस्यों की चिंता बढ़ा दी है कि वे कैसे अपनी सीट को बचाये रखें। इसमें जातीय गणित भी बैठाये जाने लगा है। वहीं, कुछ की नजर जिला पंचायत सदस्यों एवं प्रमुखों के आरक्षण पर लगी है कि किस जिला पंचायत सीट का आरक्षण क्या होगा और किस प्रमुख सीट का आरक्षण क्या होगा। इसके लिए लखनऊ तक जुगाड़ बैठाने की तैयारी हो रही है।
लखनऊ से एक उच्च पदस्थ सूत्र ने बताया कि हालात यह है कि आरक्षण के लिए संबंधित के फोन नंबर तलाश कर अथवा अन्य जुगाड़ से यह मालूम करने का प्रयास किया जा रहा है कि उनकी सीट का आरक्षण क्या हो सकता है।
इतना ही नहीं जिन क्षेत्रों में विधायकों की पकड़ मजबूत है उनके यहां पर भी ऐसे लोगों ने पहुंचना शुरू कर दिया है जो पहले महीनों में भी जन प्रतिनिधि के पास नहीं जाते थे। सूत्र बताते हैं कि एक विधायक के प्रतिनिधि ने भी प्रमुख चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। शहर में रहने वाले प्रतिनिधि का अधिकांश समय गांवों में कट रहा है। इस दौरान लोगों की समस्याओं के समाधान को प्राथमिकता दी जा रही है।
अब देखना यह होगा कि पंचायत चुनाव में कौन कौन भूत बनेगा और कौन वर्तमान। ग्रामीण क्षेत्रों से जुड़े विधायक भी उन चेहरों की तलाश में लग गये हैं कि कौन उनके लिए लिए मुफीद रहेगा। हालांकि विधायकों को यह डर भी सता रहा है कि यदि किसी पर गलत हाथ रख दिया तो कहीं 2027 में उन्हें ही नुकसान न हो जाये।
