Dainik Athah

अपनों का दर्द और मानवता की मरती हुई आत्मा – जनरल डॉ. वीके सिंह

14 अगस्त 1947 का वो काला सच, जिसमें छिपी है चीखें

अथाह संवाददाता
गाजियाबाद।
आज 14 अगस्त को सम्पूर्ण भारत, आजादी की पूर्व संध्या को याद कर विभाजन विभीषिका के दर्द को महसूस कर रहा है। इस दौरान मिजोरम के राज्यपाल जनरल डॉ. वीके सिंह ने कहा कि 1947 में करोड़ों लोग विभाजन के बाद ऐसी स्थिति में चले गए जहां दर्द और संघर्ष की अनेकों कहानियां बनी। जिन्हें आज सुना या पढा जाए तो रौगटे खड़े हो जाते हैं। करोड़ों लोग विभाजन से प्रभावित हुए। मीलों तक पैदल चलते हुए बाढ़, तेज धूप तथा दंगों को झेलते हुए लोग अपनी मंजिल तक पहुंचे।
इतना ही नहीं कुछ लोग रास्ते में ही दंगों, अत्यधिक थकावट तथा भोजन की कमी आदि से मर गए। विभाजन के उस दौर कतत्कालीन अविभाजित भारत के विभिन्न हिस्सों में 1946 तथा 1947 के दौरान हुई हिंसा तथा दंगों की व्यापकता और क्रूरता ने मानवता पर जो प्रश्नचिन्ह लगाया है, उसका उत्तर आजतक नहीं मिला। विभाजन के दौरान हिंसा की सनक न केवल किसी का जीवन ले लेने की थी बल्कि दूसरे धर्म की सांस्कृतिक और भौतिक उपस्थिति को मिटा देने तक की भी थी।
शताब्दियों तक विभिन्न धर्म के लोग देश के अलग-अलग क्षेत्रों में सह-अस्तित्व में जीवन यापन करते थे, लेकिन धीरे-धीरे फैले सांप्रदायिकता के विष ने सदियों की सह-अस्तित्व की भावना को खत्म कर एक-दूसरे के रक्त का प्यासा बना दिया। रेडक्लिफ के सीमा विभाजन के खतरनाक सिद्धांत ने जो जटिलताएं और विषमताएं भारत विभाजन से उत्पन्न की वह? कभी भुलाई न जा सकेंगी।


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