Dainik Athah

योगी सरकार के शिक्षा सुधारों को फिर मिली न्यायिक मान्यता

  • छोटे स्कूलों के विलय पर हाईकोर्ट की मुहर, एकल पीठ के बाद खंडपीठ ने भी प्रदेश सरकार की मंशा को सही माना
  • न्यायमूर्ति ए.आर. मसूदी और न्यायमूर्ति श्रीप्रकाश सिंह की खंडपीठ ने प्रदेश सरकार के पक्ष में खारिज की याचिका
  • शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने और संसाधनों के समुचित उपयोग की दिशा में योगी सरकार को मिली बड़ी राहत
  • निर्णय के बाद 50 से कम छात्र संख्या वाले विद्यालय हो सकेंगे समेकित
  • बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और बेहतर संसाधनों का मिलेगा लाभ

अथाह ब्यूरो
लखनऊ।
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा चलाए जा रहे प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालयों के समेकन अभियान को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक बार फिर संवैधानिक और जनहित में ठहराया है। इससे शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने और संसाधनों के समुचित उपयोग की दिशा में योगी सरकार को बड़ी न्यायिक राहत मिली है।
हाईकोर्ट का यह फैसला योगी सरकार की शिक्षा नीति को न्यायिक वैधता प्रदान करता है। यह स्पष्ट संदेश है कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा केवल भवनों से नहीं, संगठित संसाधनों और प्रभावी क्रियान्वयन से मिलती है।

खंडपीठ ने खारिज की नई जनहित याचिका
गुरुवार को न्यायमूर्ति ए.आर. मसूदी और न्यायमूर्ति श्रीप्रकाश सिंह की खंडपीठ ने स्थानीय अधिवक्ता ज्योति राजपूत द्वारा दाखिल जनहित याचिका को खारिज कर दिया। याचिका में 16 जून 2025 को जारी विद्यालयों के समेकन संबंधी सरकारी आदेश को चुनौती दी गई थी। साथ ही दूरदराज क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों के लिए परिवहन सुविधा उपलब्ध कराने की मांग भी की गई थी।राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता अनुज कुदेसिया और मुख्य स्थाई अधिवक्ता शैलेंद्र कुमार सिंह ने दलील दी कि 7 जुलाई 2025 को इसी विषय पर एकल पीठ द्वारा पहले ही सीतापुर के 51 बच्चों की याचिका पर विस्तृत निर्णय दिया जा चुका है। इसी आधार पर कोर्ट ने ढकछ को सुनवाई योग्य न मानते हुए खारिज कर दिया।

पहले ही एकल पीठ कर चुकी है स्पष्ट फैसला
इससे पहले 7 जुलाई को न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने सभी संबंधित याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा था कि सरकार का यह कदम अनुच्छेद 21अ का उल्लंघन नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और समान अवसर उपलब्ध कराना है। कोर्ट ने यह भी माना कि छोटे स्कूलों में संसाधन बिखरे हुए थे, जिससे बच्चों को अध्यापक, पुस्तकालय, खेल-कूद और डिजिटल सुविधा जैसी आवश्यक सुविधाएं नहीं मिल पा रही थीं।

सरकार की मंशा पर कोर्ट ने जताया भरोसा
सरकार की ओर से कहा गया कि 50 से कम छात्र संख्या वाले या छात्रविहीन विद्यालयों को नजदीकी स्कूलों से जोड़ा गया है, ताकि सभी छात्रों को एकीकृत रूप से बेहतर शिक्षण सुविधा मिल सके। कोर्ट ने इस तर्क को स्वीकार करते हुए शिक्षा सुधारों की दिशा में इसे संविधान सम्मत और दूरदर्शी नीति करार दिया।

क्या है स्कूल समेकन नीति?
. जिन विद्यालयों में 50 से कम छात्र हैं, उन्हें पास के स्कूलों से जोड़ा जा रहा है।
. शिक्षकों की संख्या, संसाधन और अधोसंरचना को एकीकृत किया जा रहा है।
. उद्देश्य है शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार, ड्रॉपआउट कम करना, बच्चों को स्मार्ट क्लास, पुस्तकालय जैसी सुविधाएं देना।


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